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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
ही खानेवाला, धोती की पाटली न बांधनेवाला, दिन और रात में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करता है । लेकिन वो प्रतिज्ञापूर्वक सचित्त आहार का परित्यागी नहीं होता । इस तरह के आचरण से विचरते हुए वो जघन्य से एक, दो या तीन दिन और उत्कृष्ट से छ मास तक सूत्रोक्त मार्ग के मुताबिक इस प्रतिमा का सम्यक् तरह से पालन करते है यह छठी (दिन-रात ब्रह्मचर्य) उपासक प्रतिमा ।
[४३] अब साँतवी उपासक प्रतिमा कहते है वो सर्व धर्म रूचिवाला होता है । यावत् दिन-रात ब्रह्मचारी और सचित्त आहार परित्यागी होता है । लेकिन गृह आरम्भ के परित्यागी नहीं होता । इस तरह के आचरण से विचरते हुए वह जगन्य से एक, दो या तीन दिन से उत्कृष्ट साँत महिने तक सूत्रोक्त मार्ग अनुसार इस प्रतिमा का पालन करते है । यह (सचित्त परित्याग नाम की) साँतवी उपासक प्रतिमा ।
[४४] अब आँठवी उपासक प्रतिमा कहते है । वो सर्व धर्म रूचिवाला होता है । यावत् दिन-रात ब्रह्मचर्य पालन करता है ।
सचित्त आहार का और घर के सर्व आरम्भ कार्य का परित्यागी होता है । लेकिन अन्य सभी आरम्भ के परित्यागी नहीं होते । इस तरह के आचरणपूर्वक विचरते वह जघन्य से एक, दो, तीन यावत् आँठ महिने तक सूत्रोक्त मार्ग अनुसार इस प्रतिमा का पालन करते है । यह (आरम्भ परित्याग नाम की) आँठवी उपासक प्रतिमा ।
[४५] अब नौवीं उपासक प्रतिमा कहते है । वो सर्व धर्म रूचिवाले होते है । यावत् दिन-रात पूर्ण ब्रह्मचारी, सचित्ताहार और आरम्भ के परित्यागी होते है । दुसरे के द्वारा आरम्भ करवाने के परित्यागी होते है । लेकिन उद्दिष्ट भक्त यानि अपने निमित्त से बनाए हुए भोजन करने का परित्यागी नहीं होता । इस तरह आचरणपूर्वक विचरते वह जघन्य से एक, दो या तीन दिन से उत्कृष्ट नौ महिने तक सूत्रोक्त मार्ग अनुसार प्रतिमा को पालता है, यह नौवीं (प्रेष्यपरित्याग नामक) उपासक प्रतिमा ।
[४६] अब दशवीं उपासक प्रतिमा कहते है-वो सर्व धर्म रूचिवाला होता है । (इसके पहले बताए गए नौ उपासक प्रतिमा का धारक होता है ।) उद्दिष्ट भक्त-उसके निमित्त से बनाए भोजन-का परित्यागी होता है वो सिर पर मुंडन करवाता है लेकिन चोटी रखता है । किसी के द्वारा एक या ज्यादा बार पूछने से उसे दो भाषा बोलना कल्पे । यदि वो जानता हो तो कहे कि “मैं जानता हूँ" यदि न जानता हो तो कहे कि “मैं नहीं जानता" इस तरह के आचरण पूर्वक विचरते वह जघन्य से एक, दो, तीन दिन, उत्कृष्ट से दश महिने तक सूत्रोक्त मार्ग अनुसार इस प्रतिमा का पालन करते है । यह (उद्दिष्ट भोजन त्याग नामक) दशवीं उपासक प्रतिमा ।
[४७] अब ग्यारहवी उपासक प्रतिमा कहते है । वो सर्व (साधु-श्रावक) धर्म की रूचिवाला होने के बावजूद उक्त सर्व प्रतिमा को पालन करते हुए उद्दिष्ट भोजन परित्यागी होता है । वो सिर पर मुंडन करवाता है या लोच करता है । वो साधु आचार और पात्र-उपकरण ग्रहण करके श्रमण-निर्ग्रन्थ का वेश धारण करता है । उनके लिए प्ररूपित श्रमण धर्म को सम्यक् तरह से काया से स्पर्श करते और पालन करते हुए विचरता है । चार हाथ प्रमाण भूमि देखकर चलता है । (उस तरह से ईया समिति का पालन करते हुए) त्रस जानवर को देखकर