Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 151
________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद [३१] जिस तरह सूखे मूलवाला वृक्ष जल सींचन के बाद भी पुनः अंकुरित नहीं होता, उसी तरह मोहनीय कर्म का सर्वथा क्षय होने से बाकी कर्म उत्पन्न नहीं होते । १५० [३२] जिस तरह बीज जल गया हो तो पुनः अंकुर उत्पन्न नहीं होता उसी तरह कर्म बीज के जल जाने के बाद भव समान अंकुर उत्पन्न नहीं होते । [३३] औदारिक शरीर का त्याग करके, नाम, गोत्र, आयु और वेदनीय कर्म का छेदन करके केवली भगवंत कर्मरज से सर्वथा रहित हो जाते है । [३४] हे आयुष्मान् ! इस तरह (समाधि को ) जानकर रागद्वेष रहित चित्त धारण करके शुद्ध श्रेणी प्राप्त करके आत्माशुद्धि को प्राप्त करते है । यानि क्षपक श्रेणी प्राप्त करके मोक्ष में जाते है । उस प्रकार मैं कहता हूँ । दसा - ६ - उपाशक प्रतिमा जो आत्मा श्रमणपन के पालन के लिए असमर्थ हो वैसी आत्मा श्रमणपन का लक्ष्य रखकर उसकी उपासक बनती है । उसे समणोपासक कहते है । यानि वो 'उपाशक' की तरह पहचाने जाते है । ऐसे उपाशक को आत्म साधना के लिए - ११ प्रतिमा का यानि ११ विशिष्ट प्रतिज्ञा का आराधन बताया है, जिसका इस दसा में वर्णन किया गया है । [३५] हे आयुष्मान् ! वो निर्वाण प्राप्त भगवंत के स्वमुख से मैंने ऐसा सुना है । यह (जिन प्रवचन में ) स्थविर भगवंत ने निश्चय से ग्यारह उपाशक प्रतिमा बताई है । स्थविर भगवंत ने कौन-सी ग्यारह उपाशक प्रतिमा बताई है ? स्थविर भगवंत ने जो ११ उपाशक प्रतिमा बताई है वो इस प्रकार है- ( दर्शन, व्रत, सामायिक, पौषध, दिन में ब्रह्मचर्य, दिन-रात ब्रह्मचर्य, सचित्त-परित्याग, आरम्भ परित्याग, प्रेष्य परित्याग, उपधिभक्त-परित्याग, श्रमण-भूत) - ( प्रतिमा यानि विशिष्ट प्रतिज्ञा ) जो अक्रियावादी है और जीव आदि चीज के अस्तित्व का अपलाप करते है । वो नास्तिकवादी है, नास्तिक मतिवाला है, नास्तिक दृष्टि रखते है, जो सम्यकवादी नहीं है, नित्यवादी नहीं है यानि क्षणिकवादी है, जो परलोकवादी नहीं है जो कहते है कि यह लोक नहीं है, परलोक नहीं है, माता नहीं, पिता नहीं, अरिहंत नहीं, चक्रवर्ती नहीं, बलदेव नहीं, वासुदेव नहीं, नर्क नहीं, नारकी नहीं, सुकृत और दुष्कृत कर्म की फलवृत्ति विशेष नहीं, सम्यक् तरह से आचरण किया गया कर्म शुभ फल नहीं देता, कुत्सित तरह से आचरण किया गया कर्म अशुभ फल नहीं देता कल्याण कर्म और पाप कर्म फल रहित है । जीव परलोक में जाकर उत्पन्न नहीं होता, नरक आदि चार गति नहीं है, सिद्धि नहीं जो इस प्रकार कहता है, इस तरह की बुद्धिवाला है, इस तरह की दृष्टिवाला है, जो ऐसी उम्मीद और राग या कदाग्रह युक्त है वो मिथ्यादृष्टि जीव है । ऐसा मिथ्यादृष्टि जीव महा इच्छ्वाला, महारंभी, महापरिग्रही, अधार्मिक, अधर्मानुगामी, अधर्मसेवी, अधर्मख्यातिवाला, अधर्मानुरागी, अधर्मद्दष्टा, अधर्मजीवी, अधर्मअनुरक्त, अधार्मिक शीलवाला, अधार्मिक आचरणवाला और अधर्म से आजीविका करते हुए विचरता है । वो मिथ्यादृष्टि नास्तिक आजीविक के लिए दुसरो को कहता है, जीव को मार डालो, उसके अंगछेदन करो, सर, पेट आदि भेदन करो, काट दो । उसके अपने हाथ लहूँ से भरे रहते है, वो

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