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दशाश्रुतस्कन्ध-३/१४
ही वार्तालाप करने लगे ।
१३. रात या विकाल में (सन्ध्या के वक्त ) यदि रानिक शैक्ष को सम्बोधन करके पूछे कि हे आर्य ! कौन-कौनसो रहे है और कौन-कौन जागते है तब वो शैक्ष, रानिक का वचन पूरा सुना- अनसुना कर दे और प्रत्युत्तर न दे ।
१४-१८ शैक्ष यदि अशन, पान, खादिम, स्वादिम समान आहार लाए तब उसकी आलोचना के पहले कोई शैक्ष के पास करे फिर रानिक के पास करे, पहले किसी शैक्ष को बताए, निमंत्रित करे फिर रानिक को दिखाए या निमंत्रणा करे, रानिक के साथ गए हो तो भी उसे पूछे बिना जो-जो साधु को देने की इच्छा हो उसे जल्द अधिक प्रमाण में वो अशन आदि दे और रानिक साधु के साथ आहार करते वक्त प्रशस्त, उत्तम, रसयुक्त, स्निग्ध, रूखा आदि चीज उस शैक्ष को मनोकुल हो तो जल्द या ज्यादा प्रमाणमें में खाए ।
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१९-२१. रानिक (गुणाधिक) शैक्ष (छोटे दीक्षा पर्यायवाले साधु) को बुलाए तब उसकी बात सुना-अनसुना करके मौन रहे, अपने स्थान पर बैठकर उनकी बात सुने लेकिन सन्मुख उपस्थित न हो, “क्या कहा ?” ऐसा कहे
२२-२४. शैक्ष, रानिक को तूं ऐसे एकवचनी शब्द बोले, उनके आगे निरर्थक बकबक करे, उनके द्वारा कहे गए शब्द उन्हें कहकर सुनाए (तिरस्कार से "तुम तो ऐसा कहते थे" ऐसा सामने बोले )
२५.३०. जब रानिक (गुणाधिक साधु) कथा कहते हो तब वो शैक्ष "यह ऐसे कहना चाहिए" ऐसा बोले, "तुम भूल रहे हो तुम्हें याद नहीं है ।" ऐसा बोले, दुर्भाव प्रकट करे, (किसी बहाना करके) सभा विसर्जन करने के लिए आग्रह करे, कथा में विघ्न उत्पन्न करे, जब तक पर्षदा (सभा) पूरी न हो, छिन्न-भिन्न न हो या बैर-बिखैर न हो लेकिन हाजिर हो तब तक उसी कथा को दो-तीन बार कहे ।
३१-३३. शैक्ष यदि रानिक साधु के शय्या या संधारा पर गलती से पांव लग जाए तब हाथ जुड़कर क्षमा याचना किए बिना चले जाए, रानिक की शय्या - संथारा पर खड़े रहेबैठे या सो जाए या उससे ऊँचे या समान आसन पर बैठे या सो जाए । उस स्थविर भगवंत ने सचमुच यह तैंतीस आशातना बताई है । ऐसा ( उस प्रकार ) मैं (तुम्हें) कहता हूँ । दसा - ३ - का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
दसा - ४- गणसंपदा
पहले, दुसरे, तीसरे, अध्ययन में कहे गए दोष शैक्ष को त्याग करने के लिए उचित है । उन सबका परित्याग करने से वो शैक्ष गणि संपदा योग्य होता है । इसलिए अब इस "दसा" में आँठ तरह की गणिसंपदा का वर्णन किया है ।
[५] हे आयुष्मान् ! उस निर्वाण प्राप्त भगवंत के स्वमुख से मैंने इस प्रकार सुना है । यह (आर्हत् प्रवचन में) स्थविर भगवंत ने सचमुच आँठ तरह की गणि संपदा कही है । उस स्थविर भगवंत ने वाकई, कौन सी आठ तरह की गणि संपदा बताई है 9. उस स्थविर भगवंत ने सचमुच जो ८-तरह की संपदा कही है वो इस प्रकार है- आचार, सूत्र, शरीर, वाचना, मति, प्रयोग और संग्रह परिज्ञा ।
वचन,
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