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बृहत्कल्प-३/१०७
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वहाँ (साधु-साध्वी) रह शकते है, (उससे विपरीत) यदि वो घर काम में लिया जाता हो, एक स्वामी हो, अन्य से परिगृहित हो तो भिक्षुभाव से आए हुए दुसरे साधु को दुसरी बार आज्ञा लेनी चाहिए । क्योंकि अवग्रह गीले हाथ की रेखा सूख जाए तब तक है ।
[१०८] घर-दीवार किला और नगर मध्य का मार्ग, खाई, रास्ता या झाड़ी के पास स्थान ग्रहण करना हो तो उसके स्वामी और राजा की पूर्व अनुज्ञा है । यानि साधु-साध्वी आज्ञा लिए बिना वहाँ रह शकते है ।
[१०९] गाँव यावत पाटनगर के बाहर शत्रसेना दल देखकर साधु-साध्वी को उसी दिन से वापस आना कल्पे लेकिन बाहर रहना न कल्पे, जो साधु-साध्वी बाहर रात्रि रहे, रहने का कहे रहनेवाले की अनुमोदना करे तो जिनाज्ञा और राजाज्ञा का उल्लंघन करते हुए अनुद्घातिक चातुर्मासिक परिहार स्थान प्रायश्चित् को प्राप्त करते है ।
[११०] गाँव यावत् संनिवेश में पाँच कोश का अवग्रह ग्रहण करना कल्पे । भिक्षा आदि के लिए ढ़ाई कोश जाने के - ढ़ाई कोश आने का कल्पे । उद्देशक-३-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
( उद्देशक-४ ) [१११] अनुद्घातिक प्रायश्चित् पात्र इन तीनों बताए है-हस्तकर्म करनेवाले, मैथुन सेवन करनेवाले, रात्रि भोजन करनेवाले । (अनुद्घातिक जिस दोष की गुरु प्रायश्चित् से कठिनता से शुद्धि हो शकती है । वो)
[११२] पारांचिक प्रायश्चित् पात्र तीन बताए है-दुष्ट, प्रमत्त, परस्पर मैथुनसेवी । (पारांचिक-प्रायश्चित् के दश भेद में से सबसे कठिन प्रायश्चित्, दुष्ट-कषाय से और विषय से अधम बने, प्रमत्त, मद्य-विषय, कषाय, विकथा, निद्रा से प्रमादाधीन हुए)
[११३] अनवस्थाप्य प्रायश्चित् पात्र यह तीन बताए है । साधर्मिक चीज की चोरी करनेवाले, अन्यधर्मी की चीज की चोरी करनेवाले, हाथ से ताड़न करनेवाले ।
[११४-११५] जात नपुंसक, कामवासना दमन में असमर्थ, पुरुषत्वहीन कायर पुरुष इन तीन तरह के पुरुष को प्रवज्या देना, मुंड़ित करना, शिक्षा देने के लिए, उपस्थापना करने के लिए, एक मांडली में आहार करने के लिए या हमेशा साथ रखने के लिए योग्य नहीं। यानि इन तीनों में से किसी को प्रवजित करने के आदि कार्य करना न कल्पे ।
[११६] अविनीत, घी आदि विगई में आसक्त, अनुपशान्त क्रोधी, इन तीन को वाचना देना न कल्पे, विनित, विगई में अनासक्त, उपशान्त क्रोधवाले को कल्पे ।
[११७-११८] दुष्ट-तत्त्वोपदेष्टा प्रति द्वेष रखनेवाले, मूल-गुणदोष से अनभिज्ञ, व्युद्ग्राहित, अंधश्रद्धावाला दुराग्रही यह तीन दुर्बोध्य बताए है । अदुष्ट, अमुढ़, अव्युद्ग्राहित् यह तीन सुबोध्य बताए है।
[११९-१२०] म्लान साध्वी हो तो उसके पिता, भाई या पुत्र और ग्लान साधु हो तो उसकी माता, बहन या पुत्री वो साधु या साध्वी गिर रहे हो तो हाथ का सहारा दे, गिर गए हो तो खड़े करे, अपने आप खड़ा होना-बैठने के लिए असमर्थ हो तो सहारा दे तब वो साधु-साध्वी विजातीय व्यक्ति के स्पर्श की (पूर्वानुभूत मैथुन की स्मृति से) अनुमोदना करे तो