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व्यवहार-४/१२२
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वंदन आदि करे बिना रहना न कल्पे, लेकिन अन्योन्य एक-एक को वडीलरूप से अपनाकर विचरना कल्पे ।
[१२३-१२६] कुछ साधु, गणावच्छेदक, आचार्य या यह सब इकट्ठे होकर विचरे उनको अन्योन्य एक एक को वडील किए बिना विचरण न कल्पे । लेकिन छोटों को बड़ो को वडील की तरह स्थापित करके-वंदन करके विचरना कल्पे-ऐसा मैं (तुम्हें) कहता हूँ । उद्देशक-४-का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(उद्देशक-५ ) [१२७-१२८प्रवर्तिनी साध्वी को गर्मी और शीतकाल में खुद के साथ दो साध्वी का विचरना न कल्पे, तीन हो तो कल्पे ।
[१२९-१३०] गणावच्छेदणी साध्वी का शेष काल में खुद के साथ तीन को विचरना न कल्पे, चार को कल्पे ।।
[१३१-१३४] वर्षावास यानि चौभासी रहना खुद के सहित प्रवर्तिनी को तीन साध्वी को और गणावच्छेदणी साध्वी को चार साध्वी को न कल्पे, लेकिन कुल चार साध्वी हो तो प्रवर्तिनी को आर पाँच साध्वी हो तो गणावच्छेदणी को कल्पे ।
[१३५-१३६] वो गाँव यावत् संनिवेश के लिए कईं प्रवर्तिनी को खुद के सहित तीन को, कई गणावच्छेदणी को खुद के सहित चार को शेषकाल में अन्योन्य एक एक की निश्रा में विचरना कल्पे, वर्षावास रहना हो तो कई प्रवर्तिनी हो तो खुद के साथ चार को और कई गणावच्छेदणी हो तो पाँच की अन्योन्य निश्रा में रहना कल्पे ।
[१३७-१३८] एक गाँव से दुसरे गाँव विचरते हुए या वर्षावास में रहे साध्वी जिन्हें आगे करके विचरते हो तो बड़े साध्वी शायद काल करे तो उस समुदाय में रहे दुसरे किसी उचित साध्वी को वडील स्थापित करके उसकी आज्ञा में रहे, यदि वडील की तरह वैसे कोई उचित न मिले और अन्य साध्वी आचार-प्रकल्प से अज्ञान हो तो एक रात का अभिग्रह लेकर, जिन दिशा में उनकी मांडली की अन्य साध्वी हो वहाँ जाना कल्पे जो कि वहाँ विहार निमित्त से रहना न कल्पे लेकिन बिमारी आदि की कारण से रहना कल्पे । कारण पूरी होने पर यदि किसी दुसरे साध्वी कहे कि हे आर्या ! एक या दो रात्रि यहाँ रहो तो रहना कल्पे, उसके अलावा जितनी रात रहे उतना छेद या परिहार तक आता है।
[१३९-१४०] प्रवर्तिनी साध्वी बिमारी आदि कारण से या मोह के उदय से चारित्र छोड़कर (मैथुन अर्थे) देशान्तर जाए तब अन्य को ऐसा कहे कि मैं काल करूँ तब या मेरे बाद मेरी पदवी इस साध्वी को देना । यदि वो उचित लगे तो पदवी दे, उचित न लगे तो न दे । उसे समुदाय में अन्य कोई योग्य लगे तो उसे पदवी दे, यदि कोई उचित न लगे तो पहले कहे गए अनुसार पदवी दे । ऐसा करने के बाद कोई साध्वी ऐसा कहे कि हे आर्या ! तुम्हारा यह पदवी दोषयुक्त है इसलिए उसे छोड दो तब वो साध्वी यदि पद छोड़ने के लिए प्रवृत्त न हो तो जितने दिन उनकी पदवी रहे उतने दिन का सबको छेद या तप प्रायश्चित् आता है ।
[१४१-१४२] दीक्षा आश्रित करके नए या तरुण साधु..या साध्वी हो उसे आचार