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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
आतंक, सिवा तेल, घी, मक्खन या चरबी लगाना या घिसना वो सब काम न कल्पे ।
[१९४] परिहारकल्प स्थित (परिहार तप करते) साधु यदि वैयावच्च के लिए कहीं बाहर जाए और वहाँ परिहारतप का भंग हो जाए, वो बात स्थविर अपने ज्ञान से या दुसरों के पास सुनकर जाने तो उसे अल्प प्रायश्चित् देना चाहिए ।
[१९५] साधु-साध्वी आहार के लिए गृहस्थ के घर में प्रवेश करे और वहाँ किसी एक तरह का पुलाक भक्त यानि कि असार आहार ग्रहण करे, यदि वो गृहीत आहार से उस साधुसाध्वी का निर्वाह हो जाए तो उसी आहार से अहोरात्र पसार करे लेकिन दुसरी बार आहार ग्रहण करने के लिए गृहस्थ के घर में उसका प्रवेश करना न कल्पे । लेकिन यदि उसका निर्वाह न हो शके तो आहार के लिए दुसरी बार भी गृहस्थ के घर जाना कल्पे-इस प्रकार मैं (तुम्हें) कहता हूँ।
(उद्देशक-६) [१९६] साधु-साध्वी को यह छ वचन बोलने न कल्पे, जैसे कि असत्य मिथ्याभाषण, दुसरों की अवहेलना करती बोली, रोषपूर्ण वचन, कर्कश कठोर वचन, गृहस्थ सम्बन्धी जैसे कि पिता-पुत्र आदि शब्द और कलह शान्त होने के बाद भी फिर से बोलना ।।
[१९७] कल्प के छ प्रस्तार बताए है । यानि साध्वाचार के प्रायश्चित् के छ विशेष प्रकार बताए है । प्राणातिपात-मृषावाद-अदत्तादान-ब्रह्मचर्यभंग-पुरुष न होना या दास या दासिपुत्र होना-इन छ में से कोई आक्षेप करे . जब किसी एक साधु-साध्वी पर ऐसा आरोप लगाए तब पहली व्यक्ति को पूछा जाए कि तुमने इस दोष का सेवन किया है यदि वो कहे कि मैंने वो गलती नहीं की तो आरोप लगानेवाले को कहा जाए कि तुम्हारी बात का सबूत दो । यदि आरोप लगानेवाला सबूत दे तो दोष का सेवन करनेवाला प्रायश्चित् का भागी बने, यदि सबूत न दे शके तो आरोप लगानेवाला प्रायश्चित् के भागी बने ।
[१९८-२०१] साधु के पाँव के तलवे में तीक्ष्ण या सूक्ष्म काँटा-लकड़ा या पत्थर की कण लग जाए, आँख में सूक्ष्म जन्तु, बीज या रज गिरे और उसे खुद साधु या सहवर्ती साधु नीकालने के लिए या ढूँढ़ने के लिए समर्थ न हो तब साध्वी उसे नीकाले या ढूँढ़े तो जिनाज्ञा का उल्लंघन नही होता उसी तरह ऐसी मुसीबत साध्वी को हो तब साध्वी उसे नीकालने या ढूँढ़ने के लिए समर्थ न हो तो साधु उसे नीकाले तो जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं होता ।
[२०२-२०९] दुर्ग, विषमभूमि या पर्वत पर से सरकती या गिरती, दलदल, कीचड़, शेवाल या पानी में गिरती या डूबती नौका पर चड़ती या उतरती, विक्षिप्त चित्तवाली हो (तब पानी में अग्नि में या ऊपर से गिरनेवाली) ऐसी साध्वी को यदि कोई साधु पकड़ ले या सहारा देकर बचाए तो जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं होता, उसी तरह प्रलाप करती या अशान्त चित्तवाली, भूत-प्रेत आदि से पीड़ित, उन्मादवाली या पागल किसी तरह के उपसर्ग की कारण से गिरनेवाली या भटकती साध्वी को पकड़नेवाले या सहारा देनदेवाले साधु जिनाज्ञा न उल्लंघन नहीं करता।
[२१०-२१३] कलह के वक्त रोकने के लिए, कठिन प्रायश्चित् की कारण से चलचित्त हुए, अन्नजल त्यागी संथारा स्वीकार किया हो और अन्य परिचारिका साध्वी की कमी हुई हो, गृहस्थ जीवन के परिवार की आर्थिक भींस की कारण से विचलित मनोदशा की कारण से धन