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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
खाया जाता हो ऐसे स्थल, इन सभी स्थान को देखने की इच्छा रखे ।
[७७५] जो साधु-साध्वी इहलौकिक या पारलौकिक, पहले देखे हुए या न देखे हुए, सुने हुए या न सुने हुए, जाने हुए या न जाने हुए ऐसे रूप के लिए आसक्त बने, रागवाले बने, गृद्धिवाले बने, अतिशय रक्त बने, किसी को आसक्त आदि करे, आसक्त आदि होनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[७७६] जो साधु-साध्वी पहली पोरिसी में लाया गया अशन, पान, खादिम, स्वादिम अन्तिम पोरसी तक स्थापन करे, रखे यानि चौथी पोरिसी में उपभोग करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[७७७] जो साधु-साध्वी अर्ध योजन यानि दो कोष दूर से लाया गया अशन, पान, खादिम, स्वादिम समान आहार करे यानि दो कोष की क्षेत्र मर्यादा का उल्लंघन करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[७७८-७८५] जो साधु-साध्वी गोबर या विलेपन द्रव्य लाकर दुसरे दिन, दिन में लाकर रात को, रात को लाकर दिन में या रात को लाकर रात में, शरीर पर लगे घा, व्रण आदि एक या बार-बार लिंपन करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[७८६-७८७] जो साधु-साध्वी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के पास उपधि वहन करवाए और उसकी निश्रा में रहे (इन सबको) अशन-आदि आहार (दुसरों को कहकर) दिलाए, दुसरों को वैसा करने के लिए प्रेरित करे, वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायिश्चत ।
[७८८] जो साधु-साध्वी गंगा, जमुना, सरयु, ऐरावती, मही उन पाँच महार्णव या महानदी महिने में दो या तीन बार उत्तरकर या तैरकर पार करे, करवाए या अनुमोदना करे ।
इस प्रकार उद्देशक-१२-में बताए मुताबिक किसी भी कृत्य खुद करे-दुसरों के पास करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो चातुर्मासिक परिहारस्थान उद्घातिक अर्थात् लघु चौमासी प्रायश्चित् आता है ।
(उद्देशक-१३) ___ “निसीह" सूत्र के इस उद्देशक में ७८९ से ८६२ यानि कि कुल ७४ सूत्र है । इसमें बताने के अनुसार किसी भी दोष का त्रिविधे सेवन करनेवाले को 'चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घातियं प्रायश्चित् आता है ।
[७८९-७९५] जो साधु-साध्वी सचित्त, स्निग्ध यानि कि सचित जल से कुछ गीलापन, सचित्त रज, सचित्त मिट्टी, सूक्ष्म त्रस जीव से युक्त ऐसी पृथ्वी, शीला, या टेकरी पर खड़ा रहे, बैठे या सोए, ऐसा दुसरों के पास करवाए या वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[७९६-७९९] जो साधु-साध्वी यहां बताए अनुसार स्थान पर बैठे, खड़े रहे, बैठे या स्वाध्याय करे । अन्य को वैसा करने के लिए प्रेरित करे या वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
जहाँ धुणा का निवास हो, जहाँ धुणा रहते हो ऐसे या अंड-प्राण, सचित्त, बीज सचित्त वनस्पति, हिम-सचित्त, जलयुक्त लकड़े हो, अनन्तकाय कीटक, मिट्टी, कीचड़, मकड़े