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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
हो, ऐसे भोजन की उम्मीद से या तृषा से यानि भोजन की अभिलाषा से उस रात को अन्यत्र निवास करे यानि कि शय्यातर की बजाय दुसरी जगह रात व्यतीत करे, करवाए या अनुमोदन करे तो प्रायश्चित् ।
[७३५] जो साधु-साध्वी नैवेध, पिंड़ यानि कि देव व्यंतर यक्ष आदि के लिए रखा गया भोजन खाए, खिलाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[७३६-७३७] जो साधु-साध्वी स्वच्छंद-आचारी की प्रशंसा करे, वंदन नमस्कार करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[७३८-७३९] जो साधु-साध्वी पहचानवाले (स्वजन आदि) और अनजान (स्वजन के सिवा) ऐसे अनुचित्त-दीक्षा की योग्यता न हो ऐसे उपासक (श्रावक) या अनुपासक (श्रावक से अन्य) को प्रवज्या-दीक्षा दे, उपस्थापना (वर्तमान काल में बड़ी दीक्षा) दे, दिलाए, देनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[७४०] जो साधु-साध्वी अनुचित्त यानि कि असमर्थ के पास वैयावच्च-सेवा ले, दिलाए, लेनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[७४१-७४४] जो साधु-अचेलक या सचेलक हो और अचेलक या सचेलक साथ निवास करे यानि स्थविर कल्पी अन्य सामाचारीवाले स्थविरकल्पी या जिनकल्पी साथ रहे और जो जिनकल्पी हो और स्थविरकल्पी या जिनकल्पी साथ रहे (अथवा अचेलक या अचेलक साधु या अचेलक साध्वी साथ निवास करे) करवाए-करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्।
[७४५] जो साधु-साध्वी रात को स्थापित, पिपर, पिपर चूर्ण, सुंठ, सूंठचूर्ण, मिट्टी, नमक, सींधालु आदि चीज का आहार करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[७४६] जो साधु-साध्वी पर्वत, उषरभूमि, नदी, गिरि आदि के शिखर या पेड़ की टोच पर गिरनेवाला पानी, आग में सीधे या कूदनेवाले, विषभक्षण, शस्त्रपात, फाँसी, विषय वश दुःख से तद्भव-उसी गति को पाने के मतलब से अन्तःशल्य, पेड़ की डाली से लटककर (गीधड़ आदि से भक्षण ऐसा) गृद्धस्पृष्ट मरण पानेवाले या ऐसे तरह के अन्य किसी भी बालमरण प्राप्त करनेवाले की प्रशंसा करे, करवाए या अनुमोदन करे ।
इस प्रकार उद्देशक-११-में बताए हुए कोइ भी कृत्य खुद करे, दुसरों से करवाए या ऐसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो चातुर्मासिक परिहार स्थान अनुद्घातिक प्रायश्चित् यानि "गुरु चौमासी" प्रायश्चित् आता है ।
(उद्देशक-१२ “निसीह" सूत्र के इस उदेशक में ७४७ से ७८८ यानि कि कुल ४२ सूत्र है । उसमें से किसी भी दोष का त्रिविधे सेवन करनेवाले को 'चाउम्मासियं' परिहारट्ठाणं उग्घातियं नाम का प्रायश्चित् आता है जिसे लघु चौमासी प्रायश्चित् कहते है ।
[७४७-७४८] जो साधु-साध्वी करुणा बुद्धि से किसी भी त्रस जाति के जानवर को तृण, मुंज, काष्ठ, चर्म-नेतर, सूत या धागे के बँधन से बाँधे, बँधाए या अनुमोदन करे, बँधनमुक्त करे, करवाए या अनुमोदन करे तो प्रायश्चित् ।।
[७४९] जो साधु-साध्वी बार-बार प्रत्याख्यान-नियम भंग करे, करवाए, अनुमोदना