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निशीथ-१४/८९४
[८९४-८९८] जो साधु-साध्वी पात्र में पड़े सचित्त पृथ्वि, अप् या तेऊकाय को, कंद, मूल, पात्र फल, पुष्प या बीज को खुद बाहर नीकाले, दुसरों से नीकलवाए, कोई नीकालकर सामने से दे उसका स्वीकार करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्।
[८९९] जो साधु-साध्वी पात्र पर कोरणी करे-करवाए या कोतर काम किया गया पात्र कोई सामने से दे तो ग्रहण करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।।
[९००-९०१] जो साधु-साध्वी जानेमाने या अनजान श्रावक या इस श्रावक के पास गाँव में या गाँव के रास्ते में, सभा में से खड़ा करके जोर-जोर से पात्र की याचना करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[९०२-९०३] जो साधु-साध्वी पात्र का लाभ होगा वैसी इच्छा से ऋतुबद्ध यानि शर्दी, गर्मी या मासकल्प या वर्षावास मतलब चातुर्मास निवास करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[९०४] इस प्रकार उद्देशक-१४ में कहने के अनुसार किसी भी दोष का खुद सेवन करे, दुसरों के पास सेवन करवाए या दोष सेवन करनेवाले की अनुमोदना करे तो चातुर्मासिक परिहारस्थान उद्घातिक नाम का प्रायश्चित् आता है जिसे लघु चौमासी प्रायश्चित् कहते है ।
(उद्देशक-१५) “निसीह" सूत्र के इस उद्देशक में ९०५ से १०५८ इस तरह से कुल १५४ सूत्र है। जिसमें से किसी भी दोष का त्रिविध से सेवन करनेवाले को 'चाउम्मासियं परिहारहाणं उग्घातियं नाम का प्रायश्चित् आता है ।
[९०५-९०८] जो साधु-साध्वी दुसरे साधु-साध्वी को आक्रोशयुक्त, कठिन, दोनों तरह के वचन कहे या अन्य किसी तरह की अति आशातना करे, करवाए-अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[९०९-९१६] जो साधु-साध्वी सचित्त आम खाए, या चूसे, सचित्त आम, उसकी पेशी, टुकड़े, छिलके के भीतर का हिस्सा खाए, या चूसे, सचित्त का संघट्टा होता हो वहाँ रहा आम का पेड़ या उसकी पेशी, टुकड़े, छिलके आदि खाए या चूसे, ऐसा खुद करे, दुसरों के पास करवाए या ऐसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[९१७-९७०] जो साधु-साध्वी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के पास अपने पाँव एक या बार बार प्रमार्जन करे, दुसरों को प्रमार्जन करने के लिए प्रेरित करे, प्रमार्जन करनेवाले की अनुमोदना करे । (इस सूत्र से आरम्भ करके) जो साधु-साध्वी एक गाँव से दुसरे गाँव विचरनेवाले अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के पास अपने सिर का आच्छादन करवाए, दुसरों को वैसा करने के लिए प्रेरित करे या वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।।
[उद्देशक-३ में सूत्र-१३३ से १८५ में यह सब वर्णन है । यानि ९१८ से. ९७० सूत्र का विवरण इस प्रकार समझ लेना, केवल फर्क इतना है कि उद्देशक तीन में यह काम खुद करे ऐसा बताते है । इस उद्देशक में यह कार्य अन्य के पास करवाए ऐसा समजना ]
[९७१-९७९] जो साधु-साध्वी धर्मशाला, बगीचा, गाथापति के घर या तापस के निवास आदि में मल-मूत्र का त्याग करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । 107