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निशीथ-१२/७४९
करे तो प्रायश्चित् ।
[७५०] जो साधु-साध्वी प्रत्येककाय-सचित्त वनस्पति युक्त आहार करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[७५१] जो साधु-साध्वी रोमयुक्त चमड़ा धारण करे अर्थात् पास रखे या उस पर बैठे, बिठाए, बैठनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[७५२] जो साधु-साध्वी घास, तृण, शण, नेतर या दुसरों के वस्त्र से आच्छादित ऐसे पीठ पर बैठे, बिठाए, बैठनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[७५३] जो साधु-साध्वी का (साध्वी साधुका) ओढ़ने का कपड़ा अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के पास सीलवाए, दुसरों को सीने के लिए कहे, सीनेवाले की अनुमोदना करे ।
[७५४] जो साधु-साध्वी पृथ्वीकाय, अपकाय, तेऊकाय, वायुकाय या वनस्पति काय की अल्पमात्र भी विराधना करे, करवाए अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[७५५] जो साधु-साध्वी सचित्त पेड़ पर चड़े, चड़ाए या चड़नेवाले की अनुमोदना करे।
[७५६-७५९] जो साधु-साध्वी गृहस्थ के बरतन में भोजन करे, उसके वस्त्र पहने, आसन आदि पर बैठे, चिकित्सा करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[७६०-७६१] जो साधु-साध्वी सचित जल से धोने समान पूर्वकर्म करे या गृहस्थ या अन्यतीर्थिक से हमेशा गीले रहनेवाले या गीले धारण, कड़छी, मापी आदि से दिए गए अशन, पान, खादिम, स्वादिम, ग्रहण करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्।
[७६२-७७४] जो साधु-साध्वी चक्षुदर्शन अर्थात् देखने की अभिलाषा से यहां कही गई दर्शनीय जगह देखने का सोचे या संकल्प करे, करवाए या अनुमोदना करे ।
लकड़े का कोतरकाम, तस्वीरे, वस्त्रकर्म, लेपनकर्म, दाँत की वस्तु वस्तु, मणि की चीज, पत्थरकाम, गुंथी-अंगूठी या कुछ भी भरके बनाई चीज, संयोजना से निर्मित् पत्ते निर्मित या कोरणी, गढ़, तख्ता, छोटे या बड़े जलाशय, नहेर, झील, वाव, छोटा या बड़ा तालाब, वावडी, सरोव, जल श्रेणी या एकदुजे में जानेवाली जलधारा, वाटिका, जंगल, बागीचा, वन, वनसमूह या पर्वतसमूह, गाँव, नगर, निगम, खेड़ा, कसबा, पल्ली, द्रोणमुख, पाटण, खाई, धान्य क्षेत्र या संनिवेस, गाँव, नगर यावत् संनिवेश का किसी महोत्सव, मेला विशेष, गाँव, नगर यावत् संनिवेश का घात या विनाश, गाँव, नगर यावत् संनिवेश का पथ या मार्ग, गाँव, नगर यावत् संनिवेश का दाह, अश्व, हाथी, ऊँट, गौ, पाड़ा या सूवर का शिक्षण या क्रिडास्थल, अश्व, हाथी, ऊँट, गौ, पाड़ा या सुवर के युद्ध, गौ, घोड़े या हाथी के बड़े समुदायवाले स्थान, अभिषेक, कथा, मान-उन्मान, प्रमाण, बड़े आहत् (ठुमके) नृत्य, गीत, वाजिंत्र, उसके तलताल, त्रुटित घन मृदंग आदि के शब्द सुनाई देते हो ऐसे स्थान, राष्ट्रविप्लव, राष्ट्र उपद्रव, आपस में अंतर्देषजनित उपद्रव वंश परम्परागत बैर से पेदा होनेवाला क्लेश, महायुद्ध, महासंग्राम, झगड़े, जोरो से बोलना आदि स्थान, कई तरह के महोत्सव, ईन्द्रमहोत्सव, स्त्री-पुरुष, स्थविर, युवान, किशोर आदि अलंकृत या निरलंकृत हो, गाते, बजाते, नाचते, हँसते, खेलते, मोह उत्पादक चेष्टा करते हो, विपुल अशन आदि का आपस में आदान-प्रदान होता हो, खाना