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निशीथ-२/९४
गया या विशेष ऐसा, एक ही घर से पूर्ण मतलब सबकुछ, बरतन, थाली आदि में से आधा या तीसरे-चौथे हिस्से का...दान के लिए नीकाले गए हिस्से का...छठे हिस्से का पिंड मतलव आहार या भोजन ले यानि कि उपभोग करे, करवाए या उपभोग करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । (ऐसा करने में निमंत्रणा, दुसरों को आहार में अंतराय, राग, आज्ञाभंग आदि दोप की संभवित् है ।)
[९५] जो साधु-साध्वी (बिना कारण मासकल्प आदि शास्त्रीय मर्यादा भंग करके) एक जगह हमेशा निवास करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।।
[९६] जो साधु-साध्वी (वस्त्र-पात्र-आहार आदि) दान ग्रहण करने से पहले और ग्रहण करने के बाद (वस्तु या दाता की) प्रशंसा करे, परिचय करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[९७] जो साधु-साध्वी फिर वो ‘समाण' - गृद्धि रहित और मर्यादा से स्थिर निवास रहा हो, 'वसमाण' नवकल्प विहार के पालन करने में रहे हो, वो एक गाँव से दुसरे गाँव विहार करनेवाले बचपन से पूर्व पहचानवाले ऐसे या जवानी के बाद परिचित वने ऐसे रागवाले कुल - घर में भिक्षा, चर्या से पहले जाकर अपने आगमन का निवेदन करके, फिर उन घरों में भिक्षा के लिए जाए । दुसरों को भेजे या भेजनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[९८] जो साधु-साध्वी अन्य तीर्थिक, गृहस्थ, ‘परिहारिक' अर्थात् मूल-उत्तरगुणवाले तपस्वी या 'अपारिहारिक' अर्थात् मूल-उत्तरगुण में दोषवाले पासत्था के साथ गृहस्थ के कुल में भीक्षा लेने की बुद्धि से, भिक्षा लेने के लिए या भिक्षा लेकर प्रवेश करे या बाहर नीकले दुसरों को वैसी प्रेरणा दे या वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[९९-१००] जो साधु-साध्वी अन्यतीर्थिक, गृहस्थ, पारिहारिक या अपारिहारिक के साथ (अपने उपाश्रय-वसति की हद) बाहर ‘विचारभूमि' मल, मूत्र आदि के लिए जाने की जगह या 'विहारभूमि' स्वाध्याय के लिए की जगह में प्रवेश करे या वहाँ से बाहर नीकले, उक्त अन्य तीर्थक आदि चार के साथ एक गाँव से दुसरे गाँव विचरण करे । यह काम दुसरों से करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[१०१-१०२] जो साधु-साध्वी अनेक प्रकार का आहार अलग-अलग तरह के पानी पड़िगाहे यानि ग्रहण करे फिर मनोज्ञ, वर्ण, गंध, रस आदि युक्त आहार पानी खाए, पीए और अमनोज्ञ-वर्ग आदि आहार-पानी परठवे ।
[१०३] जो साधु-साध्वी मनोज्ञ-शुभ वर्ण, गंध आदि युक्त उत्तम तरह के अनेकविध आहार आदि लाकर इस्तेमाल करे, (खाए-पीए) फिर बचा हुआ आहार पास ही में रहे जिनके साथ मांडलि व्यवहार हो ऐसे, निरतिचार चारित्रवाले समनोज्ञ साधर्मिक (साधु-साध्वी) को बिना पूछे, न्यौता दिए बिना परठवे, परठवावे या परठवनावाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्।
[१०४-१०५] जो साधु-साध्वी सागारिक मतलब सज्जात्तर यानि कि वसति का अधिपति या स्थान दाता गृहस्थ, उसका लाया हआ आहार आदि ग्रहण करे और इस्तेमाल करे यह काम खुद करे, करवाए या अनुमोदन करे तो प्रायश्चित् ।।
[१०६] जो साधु-साध्वी सागारिक यानि कि सज्जात्तर के कुल घर आदि की जानकारी के सिवा, पहले देखे हुए घर हो तो पूछकर तय करने के सिवा और न देखे हुए घर हो तब