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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
जननेन्द्रिय, गुह्य हिस्सा या छिद्र को औषधि विशेष से लेप करे, अचित्त ऐसे ठंड़े या गर्म पानी से एक बार या बार-बार प्रक्षालन करे, प्रक्षालन बाद एक या कईं बार किसी आलेपन विशेष से विलेपन करे, विलेपन के बाद तेल, घी, चरबी या मक्खन से अभ्यंगन या प्रक्षण करे, उसके बाद किसी गन्धदार द्रव्य से उसको धूप करे मतलब गन्धदार बनाए यह काम खुद करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदन करे तो प्रायश्चित् ।
[४११-४१५] जो साधु-साध्वी मैथुन की इच्छा से अखंड़ वस्त्र धारण करे यानि अपने पास रखे, अक्षत् (जो फटे हुए नहीं है), धोए हुए (सफेद- उज्ज्वल) या मलिन, रंगीन, रंगबेरंगी सुन्दर वस्त्र धारण करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
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[४१६-४६८] जो साधु-साध्वी मैथुन सेवन की इच्छा से एक बार या कईं बार अपने पाँव प्रमार्जन करे, करवाए या अनुमोदना करे (यह कार्य आरम्भ करके) एक गाँव से दुसरे गाँव जाते हुए अपने मस्तक को आच्छादन करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
(यहाँ ४१६ से ४६८ में कुल ५३ सूत्र है । उसका विवरण उद्देशक- ३ के सूत्र १३३ से १८५ मुताबिक जान लाने । विशेष केवल इतना कि "पाँव प्रमार्जन से मस्तक आच्छादन " तक की सर्व क्रिया मैथुन सेवन की इच्छा से की गई हो तब "गुरु चौमासी" प्रायश्चित् आता है ऐसा जानना । )
[४६९] जो साधु-साध्वी मैथुन सेवन की इच्छा से दुध, दहीं, मक्खन, घी, गुड़, मोरस, शक्कर या मिश्री या ऐसे अन्य किसी पौष्टिक आहार करे, करवाए या अनुमोदना करे । इस प्रकार उद्देशक- ६ में बताए अनुसार किसी भी एक या ज्यादा दोष का सेवन करे, करवाए या अनुमोदना करे तो वो साधु, साध्वी को चातुर्मासिक परिहारस्थान् अनुद्घातिक प्रायश्चित् आता है, जिसे "गुरु चौमासी" प्रायश्चित् नाम से भी पहचाना जाता है ।
उद्देशक - ७
'निसीह' सूत्र के इस उद्देशक में ४७० से ५६० इस तरह कुल ९१ सूत्र है । जिसमें से किसी भी दोष का त्रिविधे सेवन करनेवाले के 'चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घातियं' नाम का प्रायश्चित् आता है । इस प्रायश्चित् का अपर नाम 'गुरु चौमासी' प्रायश्चित् है ।
[४७०-४८१] जो साधु (स्त्री के साथ) साध्वी (पुरुष के साथ) मैथुन सेवन की इच्छा से तृण, मुन (एक तरह का तृण), बेल, मदनपुष्प, मयुर आदि के पींच्छ, हाथी आदि के दाँत, शींग, शंख, हड्डियां, लकड़े, पान, फूल, फल, बीज हरित वनस्पति की माला करे, लोहा, ताम्र, जसत्, सीसुं, रजत, सुवर्ण के किसी आकार विशेष, हार, अर्द्धहार, एकसरो हार, सोने के हाथी दाँत के रत्न का कर्केतन के कड़ले, हाथ का आभरण, बाजुबंध, कुंडल, पट्टे, मुकुट, झुंमखे, सोने का सूत्र, मृगचर्म, ऊन का कंबल, कोयर देश का किसी वस्त्र विशेष या इस तीन में से किसी का आच्छादन, श्वेत, कृष्ण, नील, श्याम, महाश्याम उन चार में से किसी मृग के चमड़े का वस्त्र, ऊँट के चमड़े का वस्त्र या प्रावरण, शेर- चित्ता, बंदर के चमड़े का वस्त्र, श्लक्ष्ण या स्निग्ध कोमल वस्त्र, कपास वस्त्र पटल, चीनी वस्त्र, रेशमी वस्त्र, सोनेरी सोना जड़ित या सोने से चीतरामण किया हुआ वस्त्र, अलंकारयुक्त अलंकार चित्रित या विविध अलंकार से भरा वस्त्र, संक्षेप में कहा जाए तो किसी भी तरह के हार, कड़े, आभूषण या वस्त्र