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निशीथ-३/१८५
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[१८५] जो साधु-साध्वी एक गाँव से दुसरे गाँव विहार करते हुए अपने सिर को ढंके, आवरण से आच्छादित करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[१८६] जो साधु-साध्वी शण, ऊनी, सूत या वैसी चीज में से वशीकरण का धागा बनाए, वनवाए या बनानेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।।
[१८७-१९५] जो साधु-साध्वी घर के आँगन के पास, दरवाजे पर, अंतर द्वार पर, अग्रहिस्से में, आँगन में या मुत्र-विष्ठा निवारण स्थान में, मृतकगृह में, मुर्दा जलाने के बाद ईकट्ठी हई भस्म की जगह, स्मशान के पास मृतक को थोड़ी देर रखी जाए उसी जगह, मुर्दा जलाने की जगह पर की गई डेरी के जगह, मृतक दहन स्थान पर या मृतक की हड्डिया जहाँ डाली जाती हो वहाँ, अंगार, क्षार, गात्र (रोगाक्रान्त पशु के - वो अवयव) तुस (नीभाड़ो) या भुसु सुलगाने की जगह पर, कीचड़ या नील-फूल हो उस जगह, नवनिर्मित्त ऐसा तबेला मिट्टी की खाण, या हल चलाई हुई भूमि में, उदुम्बर, न्यग्रोध या पीपल के पेड़ के फल को गिरने की जगह पर, ईख, कसूम्बा, या कपास के जंगल में, डाग (वनस्पति का नाम है), मूली, धनिया, जीरा, दमनक (वनस्पति) या मरुक (वनस्पति) रखने की जगह, अशोक, सप्तवर्ण, चंपक या आम के वन में, यह या ऐसे किसी भी तरह के पानवाले, पुष्प-फलछांववाले पेड़ के समूह हो उस जगह में (उक्त सभी जगह में से किसी भी जगह) मल, मूत्र, परठवे, परठवाए या परठवनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[१९६] जो साधु-साध्वी दिन में, रात में या विकाल-संध्या के वक्त मल-मूत्र स्थापन करके सूर्योदय से पहले परठवे, परठवाए या परठवनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त ।
इस उद्देशक में कहे मुताबिक के किसी भी दोष त्रिविधे सेवन करे तो उसे मासिक परिहारस्थान उद्घातिक प्रायश्चित् आए जिसे लघुमासिक प्रायश्चित् भी कहते है । उद्देशक-३-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(उद्देशक-४ "निसीह" सूत्र के इस चौथे उद्देशक में १९७ से ३१३ उस तरह से कुल मिलाके ११७ सूत्र है । जिसमें बताये अनुसार किसी भी दोष का त्रिविधे सेवन करनेवाले को 'मासियं परिहारठ्ठाणं उग्धातियं' नाम का प्रायश्चित् आता है । जिसे लघुमासिक प्रायश्चित् भी कहते है।
[१९७-१९९] जो साधु-साध्वी राजा को वश करे, प्रशंसा करे, आकर्षित करेकरवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
__[२००-२१४] जो साधु-साध्वी राजा के रक्षक की, नगर रक्षक की, निगम यानि कि व्यापार के स्थान के रक्षक को, देश रक्षक को, सर्व रक्षक को (इस पाँच में से किसी को भी) वश करे, प्रशंसा करे, आकर्षित करे, वैसा करवाए या वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे ।
[२१५] जो साधु-साध्वी अखंडित या सचित्त औषधि (अर्थात् सचित् धान्य या सचीत्त बीज) खुद खाए, दुसरों को खीलाए या खानेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[२१६] जो साधु-साध्वी आचार्य-उपाध्याय (किसी भी रत्नाधिक) को मालूम किए बिना (आज्ञा लिए सिवा) दहीं, दूध आदि विगइ खुद खाए खिलाए या खानेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।