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देवेन्द्रस्तव-१९२
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ब्रह्मलोक में पद्मलेश्या होते है । उनके ऊपर के देव में शुकललेश्या होती है ।
[१९३] सौधर्म और ईशान दो कल्पवाले देव का वर्ण तपे हुए सोने जैसा सानत्कुमार, माहेन्द्र और ब्रह्मलोक के देव का वर्ण पद्म जैसा श्वेत और उसके ऊपर के देव का वर्ण शुक्ल होता है ।
[१९४-१९६] भवनपति, वाणव्यंतर और ज्योतिष्क देव की ऊँचाई सात हाथ जितनी होती है । हे सुंदरी ! अब ऊपर के कल्पपति देव की ऊँचाई सुन । सौधर्म और ईशान की सात हाथ प्रमाण-उसके ऊपर के दो-दो कल्प समान होते है और एक-एक हाथ प्रमाण नाप कम होता जाता है । ग्रैवेयक के दो हाथ प्रमाण और अनुत्तर विमानवासी की ऊँचाई एक हाथ प्रमाण होती है ।
[१९७] एक कल्प से दुसरे कल्प के देव की स्थिति एक सागरोपम से अधिक होती है और उसकी ऊँचाई उससे ११ भाग कम होती है ।
[१९८] विमान की ऊँचाई और उसकी पृथ्वी की चौड़ाई उन दोनों का प्रमाण ३२०० योजन होता है ।
[१९९-२०२] भवनपति, वाणव्यंतर और ज्योतिष्क देव की कामक्रीडा शारीरिक होती है । हे सुंदरी, अव तू कल्पपति की कामक्रीडा विधि सुन । सौधर्म और ईशान कल्प में जो देव है उसकी कामक्रीडा शारीरिक होती है। सानत्कुमार और माहेन्द्र की स्पर्श के द्वारा होती है । ब्रह्म और लांतक के देव की चक्षु द्वारा होती है । महाशुक्र और सहस्रार देव की कामक्रीडा श्रोत्र (कान) द्वारा होती है । आणतप्राणत, आरण, अच्युत कल्प के देव की मन से होती है और इसके ऊपर के देव की कामक्रीडा नहीं होती ।।
[२०३] गोशीर्ष, अगरु, केतकी के पान, पुन्नाग के फूल, बकुल की सुवास, चंपक और कमल की खुश्बु और तगर आदि की खुश्बु देवता में होती है ।
[२०४] यह गन्धविधि संक्षेप में उपमा द्वारा कही गई है । देवता नजर से स्थिर और स्पर्श की अपेक्षा में सुकुमार होते है ।
[२०५-२०७] उर्ध्वलोक में विमान की गिनती ८४९७०२३ है । उसमें पुष्प आकृतिवाले ८४८९१५४ है । श्रेणीबद्ध विमान ७८७४ है । बाकी के विमान पुष्पकर्णिका आकृतिवाले है ।
[२०८] विमान की पंक्ति का अंतर निश्चय से असंख्यात योजन और पुष्पकर्णिका आकृति वाले विमान का अन्तर संख्यात-संख्यात योजन बताया है ।
[२०९] आवलिकाप्रविष्ट विमान गोल, त्रिपाई और चतुष्कोण होते है । जबकि पुष्पकर्णिका की संरचना अनेक आकार की होती है ।
२१०] गोल विमान कंकणाकृति जैसे, त्रिपाई शीगोडे जैसे और चतुष्कोण पासा के आकार के होते है ।
___ [२११] प्रथम वृत्त विमान, बाद में त्रीकोन, बाद में चतुरस्र फिर ईसी क्रम से विमान होते है ।
[२१२] विमान की पंक्ति वर्तुलाकार पर वर्तुलाकार, त्रिपाई पर त्रिपाई, चतुष्कोण पर चतुष्कोण होता है ।