________________
७०
आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
नमो नमो निम्मलदसणस्स
३४ निशीथ । छेदसूत्र-१- हिन्दी अनुवाद
(उद्देशक-१) 'निसीह' सूत्र के प्रथम उद्देशा में १ से ५८ सूत्र है । यह हरएक सूत्र के मुताबिक दोष या गलती करनेवाले को 'अनुग्घातियं' नाम का प्रायश्चित् आता है ऐसा सूत्र के अन्त में बताया है ।
दुसरे उद्देशक के आरम्भ में 'निसीह-भास' की दी गई गाथा के मुताबिक पहले उद्देश के दोष के लिए 'गुरुमासं' - गुरुमासिक नाम का प्रायश्चित बताया है । मतलब कि पहले उद्देशा में बताई हुई गलती करनेवाले को गुरमासिक प्रायश्चित आता है ।
[१] जो साधु या साध्वी खुद हस्तकर्म करे, दुसरों के पास करवाए या अन्य करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित ।
उपस्थ विषय में जननांग सम्बन्ध से हाथ द्वारा जो अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचारका आचरण करना । यहाँ हस्त विषयक मैथुन क्रिया सहित हाथ द्वारा होनेवाली सभी वैषयिक क्रियाए समज लेना ।
[२] जो साधु-साध्वी अंगादान, जनन अंग का लकड़ी के टुकड़े, वांस की सलाखा, ऊँगली या लोहा आदि की सलाखा से संचालन करे अर्थात् उत्तेजित करने के लिए हिलाए, दुसरों के पास संचालन करवाए या संचालन करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
जैसे सोए हुए शेर को लकड़ी आदि से तंग करे तो वो संचालक को मार डालता है ऐसे जननांग का संचालन करनेवाले का चरित्र नष्ट होता है ।
[३] जो साधु-साध्वी जननांग का मामूली मर्दन या विशेप मर्दन खुद करे, दुसरों के पास करवाए या वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित - जैसे सर्प उस मर्दन का विनाश करते है । ऐसे जननांग का मर्दन करनेवाले के चारित्र का ध्वंस होता है ।
[४] जो साधु-साध्वी जननांग को तेल, घी, स्निग्ध पदार्थ या मक्खन से सामान्य या विशेष अभ्यंगन मर्दन करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित...जैसे प्रज्वलित अग्नि में घी डालने से सब सुलगता है ऐसे जननांग का मर्दन चारित्र का विनाश करता है ।
[५] जो साधु-साध्वी जननांग को चन्दन आदि मिश्रित गन्धदार द्रव्य, लोध्र, नाम के सुगंधित द्रव्य या कमलपुष्प के चूर्ण आदि उद्धर्तन द्रव्य से सामान्य या विशेष तरह से स्नान करे, पीष्टी या विशेप तरह के चूर्ण द्वारा सामान्य या विशेष मर्दन करे, करवाए या मर्दन करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित जिस तरह धारवाले शस्त्र के पुरुपन से हाथ का छेद हो ऐसे गुप्त इन्द्रिय के मर्दन से संयम का छेद हो ।