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नमो नमो निम्मलदसणस्स
३२ | देवेन्द्रस्तव
प्रकिर्णक-९- हिन्दी अनुवाद
[१-३] त्रैलोक्य गुरु-गुण से परिपूर्ण, देव और मानव द्वारा पूजनीय, ऋषभ आदि जिनवर और अन्तिम तीर्थंकर महावीर को नमस्कार करके निश्चे आगमविद् किसी श्रावक संध्याकाल के प्रारम्भ में जिसका अहंकार जीत लिया है वैसे वर्धमानस्वामी की मनोहर स्तुति करता है । और वो स्तुति करनेवाले श्रावक की पत्नी सुख शान्ति से सामने बैठकर समभाव से दोनों हाथ जोड़कर वर्धमानस्वामी की स्तुति सुनती है ।
[४] तिलक समान रत्न और सौभाग्य सूचक निशानी से अलंकृत इन्द्र की पत्नी के साथ हम भी -मान नष्ट हुआ है ऐसे वर्धमानस्वामी के चरण की वंदना करते है ।
[५] विनय से प्रणाम करने की कारण से जिनके मुकुट शिथिल हो गए है उस देव के द्वारा अद्वितीय यशवाले और उपशान्त रोषवाले वर्धमानस्वामी के चरण वंदित हुए है ।
[६] जिनके गुण द्वारा बत्तीस देवेन्द्र पूरी तरह से पराजित हुए है इसलिए उनके कल्याणकारी चरण का हम ध्यान करते है ।
[७] श्रावक की पत्नी अपने प्रिय को कहती है कि इस तरह यहाँ जो बत्तीस देवेन्द्र कहलाए है उसके लिए मेरी जिज्ञासा का संतोष करने के लिए विशेष व्याख्या करो ।
[८-१०] वो बत्तीस इन्द्र कैसे है ? कहाँ रहते है ? किस की कैसी दशा है ? भवन परिग्रह कितना है ? किसके कितने विमान है ? कितने भवन है ? कितने नगर है ? वहाँ पृथ्वी की चौड़ाई ऊँचाई कितनी है ? उस विमान का वर्ण कैसा है ? आहार का जघन्यमध्यम या उत्कृष्ट काल कितना है ? श्वासोच्छ्वास, अवधिज्ञान कैसे है ? आदि मुजे बताओ।
[११] जिसने विनय और उपचार दूर किए है, हास्य रस समाप्त किया है वैसी प्रिया द्वारा पूछे गए सवाल के उत्तर में उसके पति कहते है कि हे सुतनु ! वो सुनो ।
[१२-१३] प्रश्न के उत्तर समान श्रुतज्ञान रूपी सागर से जो बात उपलब्ध है उसमें इन्द्र की नामावली सुनो । और वीर द्वारा प्रणाम किए गए उस ज्ञान समान रत्न कि जो तारागण की पंक्ति की तरह शुद्ध है उसे प्रसन्न चित्त दिल से तुम सुनो ।
[१४-१९] हे विशाल नैनवाली सुंदरी ! रत्नप्रभा पृथ्वी में रहनेवाले तेजोलेश्या सहित वीस भवनपति देव के नाम मुझसे सुनो । असुर के दो भवनपति इन्द्र है । चमरेन्द्र और असुरेन्द्र | नागकुमार के दो इन्द्र है धरणेन्द्र और भूतानन्द । सुपर्ण के दो इन्द्र है वेणुदेव और वेणुदाली । उदधिकुमार के दो इन्द्र है जलकान्त और जलप्रभ, दिशाकुमार के दो इन्द्र है अमितगति और अमितवाहन । वायुकुमार के दो इन्द्र है वेलम्ब और प्रभंजन, स्तनित कुमार के दो इन्द्र, घोष और महाघोप । विद्युतकुमार के दो इन्द्र, हरिकान्त और हरिस्सह, अग्निकुमार के दो इन्द्र है-अग्निशीख और अग्निमानव ।
[२०-२६] हे विकसित यश और विशाल नयनवाली, सुखपूर्वक भवन में बैठी हुई