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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
[१३३] धर्मोपदेश रहित वचन संसारमूलक होने से वैसी साध्वी संसार वढ़ाती है, इसीलिए है गौतम ! धर्मोपदेश छोडकर दुसरा वचन साध्वी को नहीं बोलना चाहिए ।
[१३४] हर एक महिने एक ही कण से जो साध्वी तप का पारणा करती है, वैसी साध्वी भी यदि गृहस्थ की सावध बोली से कलह करे तो उसका सर्व अनुष्ठान निरर्थक है ।
[१३५] महानिशीथ, कल्प और व्यवहारभाष्य में से साधु-साध्वी के लिए यह गच्छाचार प्रकरण उध्धृत किया है ।
[१३६] प्रधान श्रुत के रहस्यभूत ऐसा यह अति उत्तम गच्छाचार प्रकरण अस्वाध्यायकाल छोडकर साधु-साध्वी को पढ़ना चाहिए ।
[१३७] यह गच्छाचार साधु-साध्वी को गुरुमुख से विधिवत् सुनकर या पढ़कर आत्महित की उम्मीद रखनेवालों ने जैसे यहाँ कहा है वैसा करना चाहिए ।
गच्छाचार-प्रकिर्णक सूत्र-७/१ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण