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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
तक का भी (आलापक) इसी प्रकार कहना चाहिए ।
मनुष्यों में भी सामान्य जीवों को तरह जान लेना विशेष यह है कि सिद्धों का कथन छोड़कर । वाणव्यन्तर देवों से वैमानिक देवों तक नैरयिकों की तरह कहना चाहिए ।
लेश्यावाले जीवों के विषय में सामान्य जीवों की तरह कहना चाहिए । कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्यावाले जीवों के सम्बन्ध में सामान्य जीवों की भांति ही सब कथन समझना चाहिए; किन्तु इतना विशेष है कि (सामान्य जीवों के आलापक में उक्त) प्रमत्त और अप्रमत्त यहाँ नहीं कहना चाहिए । तेजोलेश्या वाले, पद्मलेश्या वाले और शुक्ललेश्या वाले जीवों के विषय में भी औधिक जीवों की तरह कहना चाहिए; किन्तु इतना विशेष है कि सामान्य जीवों में से सिद्धों के विषय का कथन यहाँ नहीं करना चाहिए ।
[२३] हे भगवन् ! क्या ज्ञान इहभविक है ? परभविक है ? या तदुभयभविक है ? गौतम ! ज्ञान इहभविक भी है, परभविक भी है, और तदुभयभविक भी है । इसी तरह दर्शन भी जान लेना चाहिए । हे भगवन् ! क्या चारित्र इहभविक है, परभविक है या तदुभयभविक है ? गौतम ! चारित्र इहभविक है, वह परभविक नहीं है और न तदुभयभविक है । इसी प्रकार तप और संयम के विषय में भी जान लेना चाहिए ।
[२४] भगवन् असंवृत अनगार क्या सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, निर्वाण प्राप्त करता है तथा समस्त दुःखों का अन्त करता है ? हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! वह किस कारण से सिद्ध नहीं होता, यावत् सब दुःखों का अन्त नहीं करता ? गौतम ! असंवृत अनगार आयुकर्म को छोड़कर शेष शिथिलबन्धन से बद्ध सात कर्मप्रकृतियों को गाढ़बन्धन से बद्ध करता है; अल्पकालीन स्थिति वाली कर्म-प्रकृतियों को दीर्धकालिक स्थितिवाली करता है; मन्द अनुभागवाली प्रकृतियों को तीव्र अनुभागवाली करता है; अल्पप्रदेश वाली प्रकृतियों को बहुत प्रदेशवाली करता है और आयुकर्म को कदाचित् बांधता है, एवं कदाचित् नहीं बांधता; असातावेदनीय कर्म का बार-बार उपार्जन करता है; तथा अनादि अनवदा-अनन्त दीर्धमार्गवाले चतुर्गतिवाले संसाररूपी अरण्य में बार-बार पर्यटनकरता है; हे गौतम ! इस कारण से असंवृत अनगार सिद्ध नहीं होता, यावत् समस्त दुःखों का अन्त नहीं करता ।
भगवन् ! क्या संवृत अनगार सिद्ध होता है, यावत् सबदुःखों का अन्त करता है ? हाँ, गौतम ! वह सिद्ध हो जाता है, यावत् सब दुःखों अन्त का करता है । भगवन् ! वह किस कारण से सिद्ध हो जाता है, यावत् सब दुःखों का अन्त कर देता है ? गौतम ! संवृत अनगार आयुष्यकर्म को छोड़कर शेष गाढ़बन्धन से बद्ध सात कर्मप्रकृतियों को शिथिलबन्धनबद्ध कर देता है; दीर्धकालिक स्थिति वाली कर्मप्रकृतियों को ह्रस्व काल की स्थितिवाली कर देता है, तीव्ररस वाली प्रकृतियों को मन्द रस वाली कर देता है; बहुत प्रदेशवाली प्रकृतियों को अल्पप्रदेश वाली कर देता है, और आयुष्य कर्म को नहीं बांधता । वह असातावेदनीय कर्म का बार-बार उपचय नहीं करता, अनादि-अनन्त दीर्धमार्ग वाले चातुर्गतिकरूप संसार-अरण्य का उल्लंघन कर जाता है । इस कारण से, हे गौदम ! ऐसा कहा जाता है कि संवृत अनगार सिद्ध हो जाता है, यावत् सब दुःखों का अन्त कर देता है ।
[२५] भगवन् ! असंयत, अविरत, तथा जिसने पापकर्म का हनन एवं त्याग नहीं