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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
परणत होते हैं । (यावत्) 'अचलित कर्म की निर्जरा नहीं करते'; यहाँ तक का सब वर्णन नैरयिकों के समान समझना ।
इसी प्रकार अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय तक के जीवों के विषय में समझ लेना चाहिए । अन्तर केवल इतना है कि जिसकी जितनी स्थिति हो उसकी उतनी स्थिति कह देनी चाहिए तथा इन सबका उच्छ्वास भी विमात्रा से-विविध प्रकार से-जानना चाहिए; द्वीन्द्रिय जीवों की स्थिति कह लेनी चाहिए । उनका श्वासोच्छ्वास विमात्रा से कहना । द्वीन्द्रिय जीवों के आहार के विषय में (यों) पृच्छा करना भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों को कितने काल में आहार की अभिलाषा होती है ? अनाभोग-निवर्तित आहार पहले के ही समान समझना । जो आभोग-निर्वर्तित आहार है, उसकी अभिलाषा विमात्रा से असंख्यात समय वाले अन्तमुहूर्त में होती है । शेष सब वर्णन पूर्ववत् जानना ।
भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव जिन पुद्गलों को आहाररूप से ग्रहण करते हैं, क्या वे उन सबका आहार कर लेते हैं ? अथवा उन सबका आहार नहीं करते ? गौतम ! द्वीन्द्रिय जीवों का आहार दो प्रकार का कहा गया है, जैसे कि-रोमाहार और प्रक्षेपाहार । जिन पुद्गलों को वे रोमाहार द्वारा ग्रहण करते हैं, उन सबका सम्पूर्णरूप से आहार करते हैं; जिन पुद्गलों को वे प्रक्षेपाहाररूप से ग्रहण करते हैं, उन पुदगलों में से असंख्यातवाँ भाग आहार ग्रहण किया जाता है, और (शेष) अनेक-सहस्त्रभाग विना आस्वाद किये और बिना स्पर्श किये ही नष्ट हो जाते हैं । हे भगवन् ! इन बिना आस्वादन किये हुए और बिना स्पर्श किये हुए पुद्गलों में से कौन-से पुद्गल, किन पुद्गलों से अल्प हैं, वहुत हैं, अथवा तुल्य हैं, या विशेषाधिक हैं ? हे गौतम ! आस्वाद में नहीं आए हुए पुद्गल सवसे थोड़े हैं, स्पर्श में नहीं आए हुए पुद्गल उनसे अनन्तगुणा हैं । भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव जिन पुद्गलों को आहाररूप में ग्रहण करते हैं, वे पुद्गल उनके किस रूप में बार-बार परिणत होते हैं ? गौतम ! वे पुद्गल उनके विविधतापूर्वक जिह्वेन्द्रिय रूप में और स्पर्शेन्द्रिय रूप में बार-बार परिणत होते हैं । हे भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों को क्या पहले आहार किये हुए पुद्गल परिणत हुए हैं ? ये 'चलित कर्म की निर्जरा करते हैं। यहां तक सारा वर्णन पहले की तरह समझना ।
त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों की स्थिति में भेद है । यावत् अनेक-सहस्रभाग बिना सूंघे, बिना चखे तथा बिना स्पर्श किये ही नष्ट हो जाते हैं । भगवन् ! इन नहीं सूंघे हुए, नहीं चखे हुए और नहीं स्पर्श किये हुए पुद्गलों में से कौन किससे थोड़ा, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है ? नहीं सूंघे हुए पुद्गल सबसे थोड़े हैं, उनसे अनन्तगुने नहीं चखे हुए पुद्गल हैं, और उनसे भी अनन्तगुणे पुद्गल नहीं स्पर्श किये हुए हैं । त्रीन्द्रिय जीवों द्वारा किया हुआ आहार घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय के रूप में बार-बार परिणत होता है ।
चतुरिन्द्रिय जीवों द्वारा किया हआ आहार चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय के रूप में बार-बार परिणत होता है ।
पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कह कर उनका उच्छ्वास विमात्रा से कहना चाहिए, उनका अनाभोगनिवर्तित आहार प्रतिसमय विरहरहित होता है । आभोगनिवर्तित आहार जघन्य अन्तमुहूर्त में और उत्कृष्ट षष्ठभक्त होने पर होता है । शेप वक्तव्य ‘अचलित कर्म की निर्जरा नहीं करते,' तक चतुरिन्द्रिय जीवों के समान समझना ।