Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
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जम्बूद्वीप
उत्सर्पिणी प्रतिपद्यते 'जयाणं उत्तरद्धे पढमा तयाणं जंबुदोवे दीवे मंदरस्स पायस्स पुरस्थिमपच्चत्थिमेणं' यदा खलु मन्दरस्योत्तरार्द्ध उत्तरदिग्भागे प्रथमा उत्सर्पिणी प्रतिपद्यते भवति तदा खलु जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य पूर्वपश्चिमेन पूर्वस्यां पश्चिमायाश्च दिशि अवसर्पिणी प्रथमा भवति । 'नत्थि ओसप्पिणी णेवत्थि उस्सप्पिणी' नैवास्ति अवसर्पिणी नैवास्ति उत्सर्पिणी, कुतः अवसर्पिणी उत्सर्पिणी च कथंन भवत स्तत्राह - ' अवट्ठिएणं' इत्यादि, 'अवद्विणं तत्थ काले पन्न ते समणाउसो' अवस्थितः - सर्वथा एकत्वरूपः कालस्तत्र प्रज्ञप्तः कथितः हे श्रमण ! हे आयुष्मन् इति प्रश्न, भगवानाह - 'हंता' इत्यादि, 'हंता गोयमा' हन्त, गौतम ! 'तं चेव उच्चारेयव्धं जाव समगाउसो' तदेव सर्व प्रश्नप्रकरणमुच्चार यितव्यम् - बक्तव्यम् यावत् हे श्रमण ! हे आयुष्मन् 'जहा ओसविणीए आलावगी भणिओ एवं उस्सप्पिणीए वि भाणियव्वो' यथा येन प्रकारेण अवसर्पिण्या आलापको भणित एवं प्रकारेण उत्सर्पिण्या अपि आलापको भणितव्यो वक्तव्य इति पञ्चमशतकप्रथम देशकप्रकरणस्यातिदेशादागतस्य व्याख्यानं समाप्तमिति ॥
वि पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जह' तब मन्दर पर्वत के उत्तरार्ध में भी प्रथम उत्सर्पिणी होती है और 'जयाणं उत्तरद्धे पढमा तयाणं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं' हे भदन्त ! जब मन्दर पर्वत की उत्तर दिशा में प्रथम उत्सर्पिणी होती है तब जम्बूद्वीप नामके द्वीप में मन्दर पर्वत की पूर्व और पश्चिमदिशा मे प्रथम अवसर्पिणी होती है ? इसके उत्तर मे प्रभु कहते हैं - 'वत्थि ओसपिणी वत्थी उस्सपिणी' हे गौतम! जम्बूद्वीप के मन्दर पर्वत की पूर्व दिशा में और पश्चिम दिशा में न उत्सर्पिणी होती है और न अवसर्पिणी होनी है- क्योंकि 'अवट्ठिए णं तत्थ काले पण्णत्ते' वहां पर काल अवस्थित कहा गया है सर्वधा एक रूप कहा गया है इत्यादि रूप से भगवतिसूत्र के पञ्चम शतक के प्रथमोद्देशक प्रकरण का जो कि यहाँ अतिदेश द्वारा गृहीत किया गया है यह व्याख्यान समाप्त हुआ यह सब पाठ यहां पर "जहा पंचमसए पढमे उद्देसे
प्रथम उत्सर्पिणी होय छे भने 'जयाणं उत्तरद्धे पढमा तयाणं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं' हे महांत ! न्यारे भौंहरपर्यंतनी उत्तरद्विशामां प्रथम ઉત્સર્પિણી હાય છે ત્યારે જ બુદ્વીપ નામક દ્વીપમાં મઢરપર્યંતની પૂર્વ અને પશ્ચિમदिशाभांशु प्रथम अवसर्पिणी होय हे ? सेना वाणमां अलु उडे छे - 'णेवत्थि ओसपिणी वत्थी उत्सर्पिणी' हे गौतम! यूद्रीपना भरपर्वतनी पूर्व हिशामां ने पश्चिमहिशाभां न उत्सर्पिणी होय हे भने न अवसर्पिणी होय छे. प्रेम ' अवट्ठिएणं तत्थ काले पण्णत्ते' त्या अण अवस्थित वामां आवे छे. सर्वथा ४३५ वा आवे छेઇત્યાદિ રૂપમાં ભગવતિ સૂત્રના પાંચમા શતકના પ્રથમૈદ્દેશક પ્રકરણનું કે જે અહીં' અતિદેશ વડે ગૃહીત કરવામાં આવેલ છે. અહીં આ વ્યાખ્યાન સમાપ્ત થયું છે. આ સ
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