Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
View full book text
________________
जम्बूद्वीपप्राप्ति तिणि णक्खत्ता ऐति' त्रीणि नक्षत्राणि आषाढमासं नयन्ति परिसमापयन्ति, तानि कानि त्रीणि नक्षत्राणि यानि ग्रीष्मकालिकनत्तुर्थ मासं परिसमापयन्ति तत्राह-तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा-'मूलो पुव्वासाढा उत्तरासाढा' मूलः पूर्वाषाढा उत्तराषाढा च, इत्येतानि प्रीणि मूल पूर्वाषाढा उत्तराषाढा लक्षणानि नक्षत्राणि चतुर्थशसं परिसमापयन्ति, तत्र 'मूलो चउद्दस राईदियाई इ' मूलनक्षत्रं चतुर्दशरात्रिंदिवं नयति-परिसमापयति 'पुव्वासाढा पण्णरस राइंदियाई णेई' पूर्वाषाढा नक्षत्र माषाढमासस्य माध्यमिकानि पञ्चदशरात्रिदिवं नयतिपरिसमापयति 'उत्तरासाढा एगं राइंदियं णेइ' उत्तराषाढा नक्षत्रमाषाढमासस्य चरममेकं रात्रिदिवं नयति-परिसमापति, एलानि ग्रीष्मकालिक चत्वारि अपि सूत्राणि सरलान्येव प्रायः पूर्वे पूर्वसूत्रानुसारित्वात् केवल माषाढमासे यद्वैलक्षण्यं तत्स्वयमेव दर्शयितुमाह-'तयाणं' इत्यादि, 'तयाणं वहाए समचउरंससंठाणसंठिाए एग्गोहपरिमंडलाए सकायमणुरंगियाए छायाए सुरिए अणुपरियट्टइ' तदा आषाढमासे हलु वृत्तया समचतुरस्रसंस्थानसंस्थितया न्यग्रोधपरिमण्डलया स्वकायमनुरंगिन्या छाश्या सूर्योऽनुपर्यटले, अयं भावः तस्मिन् आषाढ. णक्खत्ता णेति' हे गौतम ! आषाढ मासको तीन नक्षत्र अपने उदय के अस्तं. गमन द्वारा परिसमाप्त करता है 'तं जहां उन नक्षत्रों के नाम इस प्रकार से हैं 'मूलो, पुव्वासाढा, उत्तराखाढा' मूल नक्षत्र, पूर्वाषाढा नक्षत्र और उत्तराषाढा नक्षत्र, इनमें 'मूलो चउद्दसराईदियाइं इ' मूल जो नक्षत्र है वह आषाढमास के प्राथमिक १४ रात्रि दिवसों को अपने उदय के आस्तंगमन द्वारा परिसमाप्त करता है 'पुन्वासाढा पण्णरस राइंदियाइं णेई' पूर्वाषाढा नक्षत्र आषाढमास के माध्यमिक १५ रात्रि दिनों को परिसमाप्त करता है और 'उत्तरामाढा एगं राइंदियाइं णेई' उत्तराषाढा नक्षत्र आषाढ मास के अन्त के एक दिनरात को परिसमाप्त करता है। इस प्रकार से ये तीन नक्षत्र आषाढमास के तीस दिनरातों को समाप्त करते हैं। आषाढमास के अन्त के दिन में 'तयाणं समचउरंज संठागसंठियाए णगो. हपरिमंडलाए सकायमणुरंगियाए छायाए मूरिए अणुपरियट्टह' समचतुरस्र
अषाढमासन त्र नक्षत्र पोताना यन! मस्तरामन द्वारा परिसमास ४३ छे, 'तं जहा ते नक्षत्रानो नाम मा प्रमाणे छ-'मूलो पुवासाढा, उत्तरासाढा' भू नक्षत्र पूर्वाषाढा नक्षत्र भने उत्तराषाढा नक्षत्र, मां 'मूलो चउद्दस राइंदियाई णेई' भूसरे नक्षत्र छे ते सपाट માસના પ્રાથમિક ૧૪ રાત દિવસેને પિતાના ઉદયના અસ્ત મન દ્વારા પરિસમાપ્ત કરે છે. 'पुव्वासाढा पण्णरस राई दियाइं णेई' पूर्वाषाढा नक्षत्र अषाढमासना मायाम1५२रात हिक्सान परिसमास ४२ छ भने 'उत्तरासाढा एगं राइंदियाई णेई' उत्तराषाढा नक्षत्र અષાઢમાસના છેલ્લા એક દિવસ રાતને સમાપ્ત કરે છે. આ રીતે આ ત્રણ નક્ષત્ર અષાઢभासना त्रीस हसताने समास रे छे. अषाढमासन मन्तना हिवसे 'तयाणं समचउरंस संठाण सठियाय णगोहपरिमंडलाए सकायमणुरंगियाए छायाए सूरिए अगुपरिया'
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org