Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 543
________________ ५३४ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसत्र धिकं परिक्षेपेण प्रज्ञप्तः-कथित इति, 'एगं जोयणसहस्सं उन्हेणं' एकं योजनसहस्रमुढेधेनोण्डत्वेन भवति जम्बूद्वीपः 'णवणवई जोयणसहस्साइं साइरेगाइं उद्धं उच्चत्तेणं' नवनवति योजनसहस्राणि सातिरेकांणि ऊर्ध्वमुच्चैस्त्वेन 'साइरेगं जोयणसयसहस्सं सम्यग्गेणं पनत्ते' सातिरेकं योजनशतसहस्रं किञ्चिदधिकं लक्षैकयोजनं सर्वाग्रेण प्रज्ञप्तः । यद्यपि उण्डखव्यवहारः सरित् समुद्रादौ दृश्यते उच्चतम्यवहारस्तु पर्वतादौ प्रसिद्धः तत्कथमत्र द्वीपे उण्डखो. चखयोः प्रदर्शनं कृतं तत्प्रदर्शनमत्रायुक्तमिव प्रतिभाति तथापि समतलभूतलादारभ्य रत्नप्रभायामधःसहस्रयोजनानि यावत् गमनेऽधोग्रामसलिलावतिविजयादिषु जम्बूद्वीपव्यवहारस्य समुपलभ्यमानत्वेन उद्वेधव्यवहारो द्वीपेऽपि न विरुध्यते एवं जम्बूद्वीपसमुत्पन्नानां ३ तीन लाख १६ हजार २ सौ २७ योजन ३ कोश २८ सौ धनुष १३ ॥ अंगुल से कुछ विशेषाधिक है तथा-'एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं' इसका उद्वेध-जमीन के भीतर में रहना-एक हजार योजन का है-अर्थात् यह जमीन के भीतर में एक हजार योजन तक गहरा गया हुआ है 'णवणवई जोयणसहस्साई साइरेगाई उद्धं उच्चत्ते णं' इसकी ऊंचाई कुछ अधिक ९९ हजार योजन की है, 'साइरेगाई जोयणसयसहस्सं सब्बग्गेणं पन्नत्ते' इस तरह इसका सर्वाग्र प्रमाण एक लाख योजन से कुछ अधिक है, यद्यपि उण्डत्व का व्यवहार-उद्वेध का व्यवहार-सरित् समुद्र आदि में देखा जाता है तथा उच्चत्व का व्यवहार पर्वतादि में प्रसिद्ध है तो फिर यहां द्वीप में उण्डत्व का और उच्चत्व का जो प्रदर्शन किया गया है वह अयुक्त जैसा प्रतीत होता है, परन्तु फिर भी समतल भूतल से लेकर रत्नप्रभा के नीचे एक हजार योजन तक जाने में अधोग्राम सलिलावतिविजयादि कों में जम्बूद्वीप का व्यवहार होता देखा जाता है इस कारण उद्वेध का व्यवहार य कोसे अट्ठावीसं तेरस अंगुलाई अद्धंगुलं किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेगं पन्नत्ते' से। પરિક્ષેપ ૩ ત્રણ લાખ ૧૬ હજાર બસે ર૭ જન ૩ કેશ ૨૮૦૦ ધનુષ ૧૩ આંગળથી ४४ विशेषाधि छ तया-'एग जोयणसहस्सं उठ्धेहेणं' मेन वेध-भीननी मह२ २७ તે-એક હજાર એજનનું છે–અર્થાત તે જમીનની અંદર એક હજાર જન સુધી ઊઠે गये। छ ‘णवणवई जोयणसहस्साई साइरेगाई उद्धं उच्चत्तण' मेथी या ४ मEि ८८ om२ योनी छे. 'साइरेगाई जोयणसयसहस्सं सव्वग्गेणं पन्नत्ते' 0 रीते मेनु સર્વાગ્રપ્રમાણે એક લાખ એજનથી કંઈક અધિક છે, જોકે ઊંડાઈને વ્યવહાર–ઉધને વ્યવહાર–સરિત્ સમુદ્ર આદિમાં જોવા મળે છે તથા ઉચ્ચત્વ (ઊંચાઈ)ને વ્યવહાર પર્વ તાદિમાં પ્રસિદ્ધ છે. તે પછી અહીં દ્વીપમાં ઊડત્વ તથા ઉચ્ચત્વનું જે પ્રદર્શન કરવામાં આવ્યું છે તે અાગ્ય જેવું પ્રતીત થાય છે પરંતુ આમ છતાં પણ સમતલ ભૂતળથી લઈને રત્નપ્રભાની નીચે એક હજાર જન સુધી જઈએ તે અધોગ્રામ સલિલાવતિ વિજ્યાદિકમાં જમ્બુદ્વીપને વ્યવહાર થતે જોવામાં આવે છે આ કારણે ઊંડાઈને વ્યવહાર Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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