Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 555
________________ जम्द्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र वृक्षाधिको द्वीपो जम्बूद्वीप इति कथितं भवतीति । अथवा-'जंबूर मुदसणाए अणादिए. णामं देवे महडिए पलियोवमट्टिइए परिवसई' जम्बो सुदर्शनायामनाढयो नामा देवो महदिको यावत् पल्योपमस्थितिकः परिवसति अत्र यावत्पदात् महाधतिको महायशो महाबलो इत्यादि, विशेषणानां प्रणं भवति, तत्र-महतो-अनेकप्रकारा ऋद्धिविद्यते यस्य स महद्धिकः, महती घुतिरामणवस्त्रादि कृता शोभाविद्यते यस्य स महाद्युतिका, तथा महादतिशायि यशः कीर्तिविते यस्य स महायशाः, तथा-महत्वलं शारीरिकं पराक्रमः पुरुषकारश्च यस्य स महाबलः, पल्योपप्रमाणा स्थिति:-आयुष्यं यस्य स पल्योपमस्थितिकः एतादृशो देवः परिवसति, से तेगडेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जंबुद्दी वे दीवे इति' तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते-वाधिपत्यमादृतनामदेवाश्रयभूतया जम्योपलक्षितो प्रसग प्राप्त होजायगा इस तरह जम्बृवृक्षों की अधिकता वाला होने के कारण इस द्वीप का नाम जम्बूद्वीप ऐसा कहा गया है अथवा 'जंबूए सुदंसणाए अणाढिए णामं देवे महिड्डीए जाव पलिओवमहिए परिवसह, से तेणटेणं गोयमा ! एवं खुबह जंबुद्दीवे दीवे इति' सुदर्शना नाम के जम्बू के ऊपर अनाढय नाम का महर्दिक यावत् एक पल्योपम की स्थितिवाला देव रहता है यावत्पद से-'महा. पुतिको, महायशा, महाबलो' इसके इत्यादि विशेषणों का ग्रहण हुआ है अनेक प्रकार की ऋद्धि जिसके पास होती है उसका नाम महर्दिक है, आभरण वस्त्रादिकृत धुति-शोभा से जो युक्त होता है वह महाद्युतिक है, जिसका यश अति. शयित होता है वह महायशा है, यह अनाढय नाम का देव भी ऐसा ही है, इसी लिये इसे 'महाद्युतिक' आदि विशेषणों से अभिहित किया गया है, इसका शारीरिक पराक्रम और पुरुषकार बहुत चढा बढा होता है इसलिये इसे महाबलकहा है इस कारण इस अनाढ्य देव का आश्रयभूत होने से हे गौतम ! इस આદિ વિશેષમાં પ્રત્યક્ષ બાધાને પ્રસંગ આવી જશે. આ રીતે ખૂક્ષોની અધિક્તાવાળે હેવાના કારણે આ દ્વીપનું નામ જંબૂઢીપ એ પ્રમાણે કહેવામાં આવ્યું છે भय41-'जंबूर सुदंसणाए अणाढिए णामं देवे महिड्ढीए जाव पलिओवनटिइए परिवसइ, से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जंबुद्दीवे दीवे इति' सुशन नामना २५६ ५२ અનાર્થે નામને મહર્દિક યાવત્ એક પલ્યોપમની સ્થિતિવાળે દેવ રહે છે–ચાવતું ५४थी-'महाद्युतिको' महायशा महाबलो' मेना त्या विशेषणानु अ५ थथु छे. अने પ્રકારની અદ્ધિ જેની પાસે હોય છે તેનું નામ મહદ્ધિક છે, આભરણવસ્ત્રાદિકત યુતિશેભાથી જે ચુક્ત હોય છે તે મહાધતિક છે, જેને યશ અતિશયિત હોય છે તે મહાયશા છે, આ અનાઢય નામનો દેવ પણ આવો જ છે આથી તેને “મહાદ્યુતિક” આદિ વિશેષણથી અભિહિત કરવામાં આવે છે, તેનું શારીરિક પરાક્રમ તથા પુરૂષકારપૌરૂષત્વ-ઘણું ઉચ્ચ કક્ષાનું હોય છે એટલે એને મહાબલ કહ્યો છે આ કારણે આ અનાધ્ય દેવના આશ્રયભૂત હેવાથી હે ગૌતમ ! આ દ્વીપનું નામ જમ્બુદ્વીપ રહેવું પડયું Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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