Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 559
________________ ५५० जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे तत्य देसे तहि तहिं बहवे जंबूरुक्खा जंबूवणा, जंबूवणसंडा णिच्चं कुसुमिया जाव पिंडिम मंजरी वडेंसमधरा सिरी ए अईव अईव उवसोभेमाणा चिटुंति, जंबूए य मुदंसणाए अणाढिए णामदेवे महड्डिए जाव पलियोवमटिइए परिवप्तइ, से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चा जंबुद्दीवे' तत्केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते जम्बूद्वीपो दोप इति, गौतम ! जम्बूद्वीपे खलु द्वीपे तत्र देशे तत्र तत्र बहवो जम्बूवृक्षाः, जम्बूधनानि जम्बूबनषण्डाः नित्यं कुसुमिता यावत् पिण्डिममञ्जरीवतंसकधराः श्रियाऽनीव प्रतीयोपशोभमानास्तिष्ठन्ति, जम्ब्बां च सुदर्शनायाम् अनाढयो नामदेवो महर्द्धिको यावत् पल्योपस्थितिकः प्रतिवसति तत्तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते जम्बूद्वीपो द्वीप इतिच्छाया ॥ एवं प्रकारेण जम्बूद्वीपादिपदानामन्वर्थप्रतिपादन रूपोऽर्थः दृश्यते । तथा हेतु:-निमित्तं सोऽपि अस्मिन्नुपाङ्गे दृश्यते यथा-'पहूर्ण भंते ! चंदे जोइसिदे जोइसराया चंदवडेंसए विणणे चंदाए रायहाणीए सभाए मुहम्माए तुडिएणं सद्धि मझ्याहयणट्ट गीयवाइय जाव दिव्याई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरिसए, गोयमा ! णो इणढे सम?' 'प्रभुः खलु भदन्त ! चन्द्रो ज्योतिष्केन्द्रो ज्योतिष्करानः चन्द्रावतंसके जंबुद्दीचे दोवे ? गोयमा ! जंतु दीवे णं दीवे तत्थ २ देसे तहिं २ यहवे जंबुरुक्खा, जंबूवणा, जंबूवणसंडा णिच्चं कुसुमिया जाव पिंडिम मंजरी वडेंसगधरा सिरीए अईवर उवसोभेलाणा चिटुंति; जंबूए य सुदंसणाए अणाढिए णामं देवे महडिए जाव पलिओवमट्टिइए परिवसइ, से तेणटेणं गोयमा! एवं घुच्चइ जंबुदीवे' इस पाठ का अर्थ पीछे लिखा चुका है। इस तरह से जंबूढीपादिक पदों का अन्वर्थ प्रतिपादकरूप अर्थ इसमें प्रकट किया गया है निमित्त-हेतु-वह भी इस उपाज में दिखाया गया है-जैसे 'पत गंभंते ! चंदे जोइसिंदे जोइसराया चंदवडेसए रायहाणीए सभाए सुहम्माए तुडिएण सद्धि मया हय ण गीयवाइयजाव दिवाई भोगभोगाई झुंजमाणे विहरित्तए० गोयमा ! णो इणटे सम?' इस पाठ का भी अर्थ पीछे लिखा जा चुका है, तथा यहां प्रतिपाद्य अर्थ के हेतु को प्रदत अथ छ ते आत मी ५४८ ४२वामा सार हे-‘से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ, जंबुद्दोवे दीवे ? गोयमा ! जंबुद्दीवेणं दीने तत्थ २ देसे तहिं २ वहवे जंबुरुक्खा , जंबूवणा, जंबूवगसंडा णिच्चं कुलुमिया जाव पिंडिम मंजरी वडेसगधरा सिरीए अईव २ उवसोभेमाणा चिटुंति, जंबूर य सुदंसणाए अणाढिए णाभं देवे महढिए जाव पलिओवमट्टिइए परिवसइ, से तेणट्रेण गोयमा ! एवं वुच्चइ जंबुद्दीवे' । ५.ने। अथ अन्यत्र समा गयेर छ. मावी રીતે જ બૂક પાતિક પદે ને અન્વર્ય પ્રતિપાદકરૂપ અર્થ આની અંદર પ્રકટ કરવામાં આવ્યું छ. निमित्त-तु-20 ५ २t Sinभा मतापामा भाव्यु छ रेभ-'पहू णं भंते ! चंदे जोइसिदे जोइसरोया चंबडे सर विमाणे चंदार रायहाणीए सभाए सुहम्माए तुडिएणं सद्धि मह याहय णट्ट गीयवाइय जाव दिव्वाइं भोगभोगाई मुंजमाणे विहरित्तए० गोयमा ! णो इणद्वे કે આ પાઠ અર્થ પણ અગાઉ લખવામાં આવી ગયેલ છે તથા અહીં પ્રતિપાવ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 557 558 559 560 561 562