Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 502
________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू. २९ चन्द्रसूर्याणां विमानवाहकदेवसंख्यानि० ४१३ मण्डि -आभरणादिना सुशोभिता कटिर्येषां ते तथा तेषाम्, 'तवणिज्जखुगणं' तपनीय खुराणा, सुवर्ण सदृशखुराणाम्, 'तवणिज्जबीहाणं' तपनीयजिहानाम्, 'तरणिज्जतालुयाणं' तपनीयतालुकानाम्-सुवर्ण सदृशतालुकानाम्, 'तवणिज्जजोत्तगसुयोजियाणं' तपनीय योगकमु घोजितानाम्, 'काममाणं' कामगमानां तत्र-कामः-स्वेच्छा तेन गमो. गमनं येषां तादृशानाम्, "पीइमाणं' प्रीतिगमानाम्, तत्र प्रीति श्चित्तस्योल्लासो विद्यते इत्यर्थः 'मणोगमाणं' मनोगमानाम्, 'मणोरमाणं' मनोरमाणाम् 'अमियगईणं' अमितगतीनाम् 'अभियवलपीरियपुरिसक्कारपरकमाणं' अमित बलवीर्य पुरुषारपराक्रमाणाम्, 'महयाहय हेसियकिलकिलाइयरवेणं' महताहय हे पितकिलकिलायितरवेण-शब्देन, तत्रमहता-बहुव्यापिना हयहेषितरूपो यः किलकिलायितरयः-सानन्दशब्दस्तेन 'मणोहरेणं' भाग और भी अनेक प्रकार के आभरणों से सुसज्जित हो रहा है 'तवणिजखुराण' इनके खुर सुवर्ण के जैसे है, 'तवणिज्ज जीहाणं' जिहा भी इनकी सुवर्ण के जैसो है, 'तवणिज्जतालुयाणं' तालु भी इनका तपनीय सुवर्ण के ही जैसा है 'तवणिज्ज जोत्तगसुयोजियाणं' तपनीय सुवर्ण के तारों से गुंथे हुए जेबरा से ये सब सुनियोजित हैं 'कामगमाणं' इच्छानुसार ये सब गमन करते हैं, 'पीइगमाणं' चित्त के उल्लास के अनुरूप ही इनकी चाल है, 'मणोगमाणं' मन की गति जैसी इनकी गति है, 'मणोरमाणं' मन को रुचें ऐसे ये बडे सुहावने हैं, 'अमियगईणं' इनकी गति अपार है 'अमियबलवीरिय पुरिसकारपरक्कमाणं' अपरं पार ही इनका बल, वीर्य और पुरुषकार पराक्रम है, 'महया हयहे. सिय किलकिलाइयरवेणं' ये सब के सब हय (घोडा) रूपधारी देव गण बहुत दूर २ तक व्याप्त होने वाले ऐसे अपने हिनहिनाट के शब्द से जो कि आनन्दयुक्त है 'मगोहरेणं' चित्त में आल्हाद का उत्पादक है 'अंबरं दिसाओ य पुरेंता' अम्बरतल एवं दिशाओं को वाचालित करते हैं और 'सोभयंता' उन्हें 'तवणजखुराग' मेमनी साना वा छ, 'तवणिज्जजीहाणं' म प मेमनी सुवर्ण २वी छे, 'तवणिजतालुयाणं' ताण ५४ अमनु तपास सुवर्ण रेवु यमीछे, 'तवणिज्ज जोत्तगसुयोजियाणं' तपासा सुना यमा२ ताथी 24 शनी साथे wi सुनियोशित छ. 'कामगमाण' ५२छानुसार तो मां गमन ४२ छे. 'पीइगमाणं' (यत्तना खास अनु३५ ॥ तेमनी याद छ, 'मणोगमाणं' भनने गमे ये तो । सोहमा छ. 'अमियगईणं' ५५२ पा२ समनी जति छ. 'अमिय बलवीरिय पुरिसक्कारपरक्कमाणं' अ५२ पार भनु म काय अने ५३५४२ ५२।म थे, 'महया हयहेसियकिलकिलाइयरवेणं' मा मया य (७) ३५धारी हेवाण घरे દૂર-દૂર પર્યંત વ્યાસ થનારા એવા પિતાના હણહણાટના શબ્દથી કે જે આનંદદાયક છે, 'मणोहरेणं' शित्तम मादा 644नार छ. 'अंबरं दिसाओ य पुरेंता' मरतसने भने &ामान वायलित ४२ छ भने 'सोभयंता' मन सुशालित . सतना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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