Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 500
________________ प्रकाशिका टीका-लप्तमवक्षस्कारः सू. २१ चन्द्रसूर्याणां विमानवाहकदेवसंख्यानि० ४६५ उत्कूदनं धावनं-शीघ्रजुगमनं धोरणं गतिचातुरी त्रिपदी-भूमौ पदत्रयन्यासः जयिनीवगमनान्तर जयवतीव यद्वा जविनीवेगवती शिक्षिता-अभ्यस्ता ग तयैस्ते तथा तेषाम्, 'ललंतलाप्रगललायवरभूसणाणं' ललन्तलामगललातवरभूषणानाम्, तत्र-ललन्ति-दोलायमानानि लामानि प्राकृतत्वात् रम्याणि गललातानि कण्ठेन्यस्तानि वरभूषणानि येषां ते तथा तेषाम्, 'संनयपासाणं' समतपार्थानाम् 'संगयपासाणं' सङ्गनपार्थानाम्, 'मुजायासाणं' मुजातपार्थानाम्, 'पीवर वट्टिय मुसंठिय कडीगं' पीवरवर्तितसुसंस्थितकटीनाम्, “ओलंब पलंवलक्षणप्पमाण जुत्त रमणिज्जवालपुच्छाणं' अवलम्ब प्रलम्बलक्षणप्रमाणयुक्त वाल. पुच्छानाम्, "तणु सुहुम सुजायणिद्ध लोमच्छविहराणं' तनुवक्ष्य सुजात स्निग्ध लोमच्छविधोरण तिवइ जहण सिक्खियगईगं' ये सब गर्त आदि के लांघने में, बलान कूदने में, धावन-दौडने में, धोरण-गति की चतुराई में, त्रिपदी में-भूमि पर तीन पैरों के रखने में जो इनकी चाल है वह जयिनी है-गमनान्तर को जीतने वाली है अथवा-वेगवती है, इससे ऐसा ज्ञात होता है कि इस प्रकार की चाल इन्होंने पहिले से ही सीख रखी है 'ललंत लामगललायवर भूसणाणं' दोलायमान एवं सुरम्य आभूषण इन्होंने अपने २ गलों में धारण कर रखे है 'संनयपासाणं' दोनों पार्श्वभाग इनके नीचे की ओर प्रमाण रूप में नत है 'संगतपासाणं' इसी कारण वे संगत और 'सुजायपासाणं' सुजात-जन्मदोष से रहित है 'पीयरपहिय सुसंठियकडीणं' इनके कटि भाग पीवर-पुष्ट और गोल हैं तथा सुन्दर आकारवाले है 'ओलंस एलंब लक्खणप्पमाणजुत्तरमणिज्जवालपुच्छाणं' इनके बाल प्रधान पुच्छों के अर्थात् चामरों के बाल अवलम्ब अपने २ स्थानों पर खुब अच्छी तरह से जमे हुए हैं बडे २ हैं, लक्षण युक्त हैं और प्रमाणोपेत हैं 'तणु. तिवइजइण सिक्खियगइण' 22 गति दिन लामा, पान-पामां, पावनદેડવામાં ધોરણ- ગતિની ચતુરાઈમાં, ત્રિપદીમાં–ભૂમિ પર ત્રણ પ મ રાખવામાં જે એમની ચાલ છે તે જયિની છેગમનાન્તરને જિતવાવાળી છે, આનાથી એવું જ્ઞાન થાય છે કે मा अनी यात साये माथी भी सीधी छे. 'ललंतल.मगललायवरभूसणाणं' सायमान भने सुरभ्य माभूषा अभय पातपाताना मणमा धारण ४॥ राभ्यां छे. 'संनयपासाणं' मन पावसाय मेमनी नीयनी मासे प्रभास२ नमेल छे. 'संगतपासाणं' मा ४२थे तेथे। संगत मा 'सुजायपासाणं' सुजत-भाया २हित 8. 'पावरवट्टिय सुसंठियकडीणं' भने। मार पी२-पुष्ट गने गो छ तथा सुन्४२ १४:२वाणे! छे. 'ओलंब पलंबलक्खणप्पमाण जुत्त रमणिज्जवालपुच्छाणं' मेमनी વાળ પ્રધાન પૂંછડીઓના અર્થાત્ ચામરોના વાળ અવલમ્બ પિતપતાના સ્થાને ઘણી सारी रीते सा छ, भोट मट छ, सक्षत छ भने प्रमाणपत छ. 'तणुसुहम सुजाय गिद्ध लोमच्छविहराणं' मेमना शरीर ५२ २ ३।। छे ते तनुसूक्ष्म-gir Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562