Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्रे
णणं गोयमा ! णो पभूति' तत्तेन थेन गौतम ! एवमुच्यते चन्द्रो देवराजः सुधर्मासभाया मन्तः पुरेण सह विहतु न समर्थ इति । अत्रैव किञ्चिद्वैलक्षण्यमाह - 'केवलं' इत्यादि, 'केवलं परियार रिद्धीए' केवलं नवरं परिवारऋद्धया, केवलं परिवारः परिकरस्तस्य ऋद्धि: - सम्पत् तया, एते सर्वेऽपि ममपरिचारकाः अहं चैतेषां स्वामी - प्रभुरित्येवं निजस्यातिविशेष दर्शनाभिप्रायेणेतिभावः । 'नो चेव णं मेहुणवत्तिचं' नैव खलु मैथुनप्रत्ययं सुरतनिमित्तं यथा भवति एवं प्रकारेण भोगभोगान् भुञ्जानो विहर्त्तु न प्रभुरिति यद्यपि अत्रोपाने सूर्यादीनामग्रमहिषी प्रदर्शनं न विद्यते तथापि जीवः भिगमा धुपाने दर्शनाद् सूर्याग्रमहिषी प्रदर्शनमपि उपयुक्तमेव 'सूरस्स जोइसरण्णो कइअग्गमडिसीओ पद्मत्ताय गोयमा ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नताओ, तं जहा सूरपमा आयवामा अचिमाडी पभंकरा, एवं अवसेसं जहा चंदपज्जुवास णिज्जाओ' वे हड्डियाँ चन्द्र एवं अन्य देवों देवियों द्वारा अर्चनीय 'यावत् पर्युपासनीय हैं 'से तेणद्वेणं गोयमा ! जो पत्ति' इस कारण हे गौतम! मैने ऐसा कहा हैं कि ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्क राज चन्द्र सुधर्मासभा में अन्तः पुर के साथ दिव्य भोग भोगों कों भोग सकने के लिये समर्थ नहीं हैं 'केवलं पडियार रिद्धीए' हां, वह इस रूपसे 'कि यह मेरा परिकर है यह उसकी सम्पत् है ये सब मेरे परिकर हैं मैं इनका स्वामी हूं इस प्रकार' वहां अपना प्रभाव प्रकट कर सकता है।
'णो चेव णं, मेहुणवत्तियं' पर वह वहां मैथुन सेवन नहीं कर सकता है । यद्यपि इस उपाङ्ग में सूर्यादिकों की अग्रमहिषियों का प्रदर्शन नहीं किया गया है फिर भी जीवाभिगम आदि उपाङ्ग में सूर्यादिकों की अग्रमहिषियों का कथन रूप प्रदर्शन हुआ है इस से यहाँ सूर्यामहिषियों का प्रदर्शन भी उपयुक्त है जो इस प्रकार से हैं- 'सूरस्स जोइसरो कह अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ' हे भदन्त ! ज्योतिष्क राज सूर्य की कितनी अग्रमहिषियां कही गई हैं ? उत्तर प्रभु ने कहा है - 'गोयमा ! चत्तारि अग्गमहिमीओ पण्णत्ताओ' हे गौतम!
पानी छे. 'से तेणट्टेणं गोयमा ! णो पभुत्ति' मा भरणे हे गौतम! में मेवु ं छु છે કે જ્યેકેિન્દ્ર જ્યાતિષ્ઠરાજ ચન્દ્ર સુધર્માંસભામાં અન્તઃપુરની સાથે દિવ્ય ભાગભાગાને भोगवी शम्वा समर्थ' नथी. 'केवलं पडियार रिद्धीए' हा, ते या ३५थी या भारी परि४२ છે, આ તેની સમ્પત્તી છે, આ બધાં મારા પરિકર છે હુ એમના સ્વામી છું એ પ્રકારે त्यांचा प्रभाव आउट ४री राडे हे 'णो चेवणं मेहुणवत्तियं' परन्तु ते त्यां भैथुन સેવન કરી શક્તા નથી, જોકે આ ઉપાંગમાં સૂર્યાદિકેની અગ્રમહિષિએનુ' પ્રદર્શન કરવામાં આવ્યું નથી તેા પણ જીવાભિગમ આદિ ઉપાંગમાં સૂર્યાર્દિકની અગ્રમહિષિઓનુ થનરૂપ પ્રદન થયું છે આથી અહીં સૂર્યગ્રમહિષએનુ પ્રદર્શન પણુ ઉપયુક્ત છે જે याप्रमाणे छे - 'सूरस्स जोइसरण्णो कइ अग्गमहिीसीओ पण्णत्ताओ' डे लगवन् ! ज्योतिष्ङशुत्र सूर्यनी डेंटली पट्टराणीयो डेवामां आवे छे ? उत्तरमा प्रभुश्री छे 'गोयमा !
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