Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 535
________________ अम्बूद्वीपप्रतिपक्ष बानीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'तिणि छलुत्तरा. विहिरयणसया सव्वग्गेण पन्नता' त्रीणि पडुत्तराणि निधिरत्नशतानि सर्वाग्रेण प्रज्ञप्तानि-कथितानि, कयं षडुत्तराणि त्रीणि शतानि निधिरत्नानि भवन्ति चेद् अत्रोच्यते-नवसंख्यकानि निधानानि तेषां चतुस्त्रिंशत्संख्यया गुणने ३०६ षडुत्तराणि त्रिंशच्छतसंख्यकानि भवन्तीति । । सम्प्रति-निधिपतीनां कतिनिधानानि तेषां सत्ताकाले भोगभोग्यानि भवन्तीति दर्शयितुं प्रश्नयनाह-'जंबुद्दीवेणं' इत्यादि, 'जंबुद्दीवेणं भंते ! दीवे' जम्बूद्वीपे खलु भदन्त ! द्वीपे सर्वद्वीपमध्य जम्बूद्वीपे इत्यर्थः 'केवइया णिहिरयणसया परिभोगत्ताए इव्वमागच्छंति' कियत्संख्यकानि निधिरत्नशतानि चक्रवादीनां परिभोग्यतया प्रयोजने समुत्पने सति 'एव्वं' इति शीघ्रमागच्छन्ति-निधिपति समीप मुपसर्पन्तीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहण्णपर छत्तीसं' जघन्यपदे षट्त्रिंशत् जघन्यपदभाविना चक्रवतिनां नवनिधानानि चतुर्गुणितानि यथोक्तसंख्याप्रदानीति । 'उकोसपए दोणि सत्तरा कुल कितने होते हैं ? यही घात गौतमस्वामीने पूछी है, इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! तिणि छलुसरा णिहिरयणसया सव्वग्गेणं पण्णत्ता' हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामके द्वीप में कुल निधानों की संख्या ३०६ होती है, यह इस प्रकार से होती है कि निधान नौ होते हैं इनमें ३४ का गुणा करने पर ३०६ हो जाते हैं। 'जंबूहीवे णं भंते ! दीवे केवइया णिहिरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति' .. अब गौतमस्वामीने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है-हे भदन्त ! इस जम्बू द्वीप नामके द्वीप में इन निधानों में से कितने निधान उनके चक्रवती आदिकों के परिभोग में काम आते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! जहण्णपए छत्तीसं उकोसपए दोणि सत्तरा णिहिरयणसया परिभोगत्ताए हब्धमागच्छंति' हे गौतम! इन निधानों में से कम से कम ३६ निधान और अधिक से अधिक दो सौ सत्तर निधान चक्रवर्ती आदिकों के काम में आते हैं । ३६ निधान काम आते हैं ऐसा નવનિધાન કુલ કેટલા હોય છે? એજ વાત ગૌતમસ્વામીએ પૂછી છે આના જવાબમાં प्रभु ४३ छे-'गोयमा ! तिणि छलुत्तरा णिहिरयणसया सव्वग्गेणं पण्णत्ता' 8 गौतम ! જખૂલીપ નામના દ્વીપમાં કુલ નિધાનેની સંખ્યા ૩૦૬ હેય છે, આ એવી રીતે હોય DD निधान न डाय छ त। 3४ थी गुमाये तो 3०६ 25 लय छे. 'जंबूहीवे गं भंते ! दीवे केवइया गिहिरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति' वे गौतमस्वामी प्रभुने આ પ્રમાણે પૂછ્યું છે-હે ભદન્ત ! આ જમ્બુદ્વીપ નામના દ્વીપમાં આ નિધાનમાંથી કેટલાં નિધાન તેમના ચક્રવર્તી આદિના પરિભેગમાં કામ આવે છે? આના ઉત્તરમાં પ્રભુ ४ छ-'गोयमा ! जहण्णपए छत्तीसं उक्कोसपए दोष्णि सत्तरा णिहिरयणसया परिभोगत्ताए ત્રિમાઇિતિ” હે ગૌતમ! આ નિધાનેમાંથી એક છામાં ઓછા ૩૬ નિધાન અને વધુમાં વધુ ૨૭૦ નિધાન ચક્રવતી આદિકના કામમાં આવે છે ૩૬ નિધાન કામ આવે છે એવું Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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