Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 504
________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः स्. २९ चन्द्रसूर्याणां विमानवाहकदेवसंख्यानि० ४९५ चन्द्रविमानवाहकानुसारेण सूर्यविमानानामपि सिंहादिदेवा वाहका वर्णनीयाः यावत्तारारूपाणामपि विमानवाहका वर्णनीयाः, यावत्पदान अनिमानानां नक्षत्र विमानानां च विमानवाहका वर्णनीयाः । 'णवरं एसदेव संघायत्ति' नवर मेष देव संघात इति, अयं भावः-सर्वेषां ज्योतिकाणां विमानवाहक सूत्रं सममेव तेषां संख्याभेस्तु पूर्व *थित गाथाद्वयादेव ज्ञातव्य स्तथाहि-पोडशदेव सहस्राणि चन्द्रविमाने वाहका भवन्ति, पूर्यविमानेऽपि षोडश एव देवसहस्राणि भवन्ति, ग्रहविमाने एकैस्मिन् अष्टौदेव सहस्राणि भवन्ति, तथा नक्षत्रविमाने चत्वारि देव सहस्राणि भवन्ति, तारारूपविमाने द्वे चैव सहस्र एकैकस्मिन् इति नवमद्वारम्, तत्रायं भाव:-चन्द्र विमाने चत्वारि सहस्राणि, गजाना चत्वारि, सिंहानां चत्वारि सहस्राणि, वृषभाणां चत्वारि अश्वानाम्, एवं सूर्यविमानेऽपि । ग्रहविमाने द्वे सहस्र सिंहाना द्वे गजानां द्वे से यावत्पद गृहीत ग्रहविमानों के और नक्षत्र विमानों के भी विमानवाहक देव वर्णन योग्य है ऐसा समझलेना चाहिये, 'णवरं एस देव संघायत्ति' इस सूत्र का भाव ऐसा है-समस्त ज्योतिष्क देवों के विमान वाहक देवों के सम्बन्ध का सूत्र समान ही है, इनकी संख्या का भेद पूर्वकथित गाथाद्वय से ही ज्ञातव्य है, जैसे-सोलह हजार चन्द्रविमान में वाहक देव हैं सो इतने ही हजार देव सूर्य विमान में वाहक हैं ग्रहविमान में एक एकमें आठ आठ हजार देव हे नक्षत्र विमान में चार हजार देव हैं तारारूप विमान में एक एक में दो हजार देव परि वाहक देव हैं इस प्रकार से यह नवम द्वार समाप्त होता है, भाव यहां ऐसा है-चन्द्रविमान में चार हजार परिवाहक गजरूपधारी देव है चार हजार सिंहरूप धारी परिवाहक देव हैं चार हजार वृषभरूप धारी देव हैं और चार हजार ही हय (घोडा) रूपधारी परिवाहक देव हैं इसी प्रकार से सूर्यविमान में भी हैं, ग्रहविमान में दो हजार सिंहरूपधारी दो हजार गजरूप धारी, दो हजार वृषभरूप धारी और दो हजार अश्वरूपधारी परिवारक देव हैं, જાણવું જોઈએ. આવી જ રીતે યાવત્પદ ગૃહીત ગ્રહરિમાનેના અને નક્ષત્ર વિમાનેના પણ विमानवा ३१ वर्षान ४२१॥ योय के सेम सम. 'णारं एस देव संघायत्त' मा સૂત્રનો ભાવ આ પ્રમાણે છે–સમસ્ત જ્યોતિષ્ક દેના વિમાનવાહક દેના સમ્બન્ધનું સૂત્ર સમાન જ છે. એમની સંખ્યાને ભેદ પૂર્વકથિત ગાથાદ્વયથી જ જ્ઞાતવ્ય છે જેમકે-ળ હજાર ચન્દ્રવિમાનમાં વાહક દેવ છે તે એટલાં જ હજાર દંડ સૂર્યવિમાનમાં વાહક છે, ગ્રહવિમાનમાં એક એકમાં આઠ આઠ હજાર દેવ છે, નક્ષત્રવિમાનમાં ચાર હજાર દેવ છે, તારારૂપવિમાનમાં એક એકમાં બે હજાર બે હજાર પરિવાહક દેવ છે. આ પ્રકારે આ નવમ દ્વાર સમાપ્ત થાય છે આ કથનને ભાવ અહીં એ છે–ચન્દ્રવિમાનમાં ચાર હજાર સિંહરૂપ ધારી પરિવહક દેવ છે, ચાર હજાર વૃષરૂપધારી દેવ છે અને ચાર હજાર જ હય (વેડા) રૂપધારી પરિવાહક દેવ છે. આવી જ રીતે સૂર્યવિમાનમાં પણ છે, ગ્રહવિમાનમાં બે Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562