Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
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प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू. २९ चन्द्रसूर्याणां विमानवाहकदेवसंख्यानि० ४७५ पुष्टाः मुश्लिष्टाः अविवराः विशिष्टा स्तीक्ष्णा या दंष्ट्रा स्ताभिर्विडम्बितं मुखं येषां ते तथा तथाविधानां प्रायः सिंहाः दंष्ट्राभिात्तमुखा एव भवन्ति इति, तथा-'रत्तुप्पलमउय मुकु. मालतालुजीहाणं' रक्तोत्पल पत्रमृदुसुकुमारतालुजिह्वानाम्, तत्र रक्तोत्पलपत्रवत्-रक्त. कमळपत्रवत् मृदुसुकुमारे तालुजिढे येषां ते तथा विधास्तेषाम्, 'महुगुलिय पिंगलक्खाण' मधुगुटिका पिङ्गलाक्षाणाम्, तत्र मधुगुटिका घनीभूतसान्द्रपिण्डः 'सहद' इति भाषाप्रसिद्धः तद्वत् पिङ्गले अक्षिणी येषां ते तथा तथाविधानाम्, 'पीवरवरोरुप डिपुण्णविउलखंधाणं' पीवरवरोरु परिपूर्णविपुलस्कन्धानाम्, तत्र पीवरे उपचिते वरे प्रधाने ऊरूजचे येषां ते तथा परिपूर्णः विपुलो विस्तीर्णः स्कन्धो येषां ते तथा-'मिउविसय मुहुमलक्खणपसत्थवरवण्णकेसरसडोवसोहियाणं' मृदु विशदसूक्ष्मलक्षणप्रशस्तवरवर्णकेसरसटोपशोभितानाम्, तत्र मृदवो विशदाः स्पष्टाः सूक्ष्माः प्रतलाः लक्षणैः प्रशस्ताः वरवर्णाः प्रधानवर्णाः याः केसरसटाः स्वत्थ केसरच्छटा स्ताभि रुपशोभितानाम् तथा-'उसियमुनमिय सुजाय अप्फो. डियलंग्लाणं' उच्छ्रितसुनमित सुजातास्फोटितलाशलानाम्, तत्र उच्छ्तिमूर्वीकृतं हैं पीबर-पुष्ट होती हैं सुश्लिष्ट-विवरविहीन होती हैं विशिष्ट होती हैं और घडी तीक्ष्ण होती हैं ऐसी दांढों से इनका मुख युक्त होता है 'रत्तप्पलमय सुकुमाल तालुजीहाणं' इनके तालु एवं जिह्वा ये दोनों रक्त कमल के पत्र जैसे मृदु एवं सुकुमार होते हैं 'महुगुलियपिंगलक्खाणं' इनकी आंखें शहद के पिण्ड जैसी पीतवर्णवाली होती हैं 'पीवर वरोरुपडिपुण्णविउलखंधाणं' इनकी दोनों जंघाएं पीवर-परिपुष्ट और वर-श्रेष्ठ सुहावनी होती है तथा इनका स्कन्ध परिपूर्ण-मांसल-एवं विस्तीर्ण होता है 'मिउविसय सुहमलक्खणपसत्थ वर वण्ण केसरसडोवसोहियाणं' ये मृदु विशद सूक्ष्म लक्षणों से प्रशस्त एवं सुन्दर वर्णविशिष्ट ऐसे गर्दन के बालों से सदा शोभित होते हैं 'उसिय सुनमिय सुजाय अप्फोडियलंगूलाणं' इनकी पूंछ ऊपर की ओर ही उठी रहती है परन्तु उसका अग्रभाग नीचे की ओर झुका रहता है अतः वह देखने में बड़ी अच्छी सुहावनी હોય છે સુશ્લિષ્ટ-વિવારવિહીન હોય છે, વિશિષ્ટ હોય છે અને ઘણું તીક્ષણ હોય છે, भवी होढाथी तभनु भुम युद्धत डाय छे. 'रत्तुप्पलमउय सुकुमाल तालुजीहाणं' मना તાળવા અને જીભ એ બંને રક્તકમળના પત્ર જેવા કેમળ અને સુકુમાર હોય છે, 'महुगुलियपिंगलक्खाणं' मेमनी मांगो मधन। (५५७ वी पानी डायथे. 'पीवरवोरुषडिपुण्णविउलखंधाणं' भनी मन न पाव२-परिपुष्ट सन १२-श्रेष्ठ सौहामी हाय छ तथा कामना २४५ परिपू-भांसस गरे विस्ती डाय छे. 'मिल विसय सुहुमलक्खणपसत्थवरवण्णकेसरसडोवसोहियाणं' ते भृढ, विश, सूक्ष्म सक्षगाथा પ્રશસ્ત અને સુન્દરવર્ણ વિશિષ્ટ એવા ગર્દનના વાળથી સદા શેભિત હોય છે, 'उसिय सुनमिय सुजाय अप्फोडियलंगूलाणं' मेमनी ५७४ी ५२नी त२६ १ लेडी से
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