Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 497
________________ = जम्बूद्वीपप्रशतिसूत्रे तत्र वरघंटिकाः क्षुद्रघण्टिकातो विशिष्टतरत्वेन प्रधानघण्टा गले येषाम् ते वरघण्टा गलकाः तथा मालया उज्ज्वलास्ते तथा तादृशानाम्, तथा - 'पउमुप्पलसगल सुरभिमाला विभूसियाणं' पद्मोत्पलसकलसुरभिमालाविभूषितानम्, तत्र पद्मानि सूर्यविकासीनि, उत्पलानि - चन्द्र विकासीनि सकलानि - अखण्डितानि, सुरभीणि-विलक्षणगन्धवन्ति तेषां माळा विलक्षण संयोगविशिष्टसमुदायः ताभिर्विभूषितानाम् | 'वहरखुराणं' बज्रखुराणाम्, वरत्नवत् खुरा येषां ते तथा तेषाम् । 'विविधविखुराणं' विविधविखुराणाम्, तत्र विविश मणिकनकादिमयत्वेन अनेकविधा विखुरा उक्तखुरेभ्य ऊर्ध्ववर्त्तित्वेन विकृष्टाः खुश येषां ते तथा तेषाम् 'फालियामयदंताणं' स्फटिकमयदन्तानाम्, 'तवणिज्जजीदानं तपनीय जिवानाम्, 'तवणिज्जतालुयाणं' तपनीय मयतालुकानाम्, 'तवणिज्ज जोतग जोइयाणं' तपनीयो कसु योजितानाम्, 'कामगमाणं' कामगमानाम् - स्वेच्छया गमनकारिणाम्, 'पीइगमाणं' प्रीतिगमानाम्, 'मणोगमाणं' मनोगमानाम्, मनोवहति मतामित्यर्थः, 'मणोरमाणं' मनोरमाणाम्, 'अमियगईणं' अमितगतीनाम् 'अमियबलदीरियपुरिसकारपरक - अधिक विशिष्टता आगई हैं- ऐसी विशिष्टता से ये संपन्न हैं 'पउप्पल सगल सुरभिमाला विश्वसियाणं' इनकी शोभा अखंडित एवं अनुपमगंध शालीषद्म और उत्पलों की मालाओं से और भी अधिक शोभायमान हो रही है' बहर खुराणं' इनके खरों के ऊपर जो विचखुरी है वह मणि कनकादिमय होने से अनेक प्रकार की हैं 'फालियामय दंताणं' स्फटिकमय इनके दांत हैं 'तवणिज्ज जीहाणं' तस सुवर्ण की इनकी जिह्वाएं हैं 'तवणिज्जतालुयाणं' तपनीय सुवर्ण के इनके तालु हैं 'तवणिज्ज जोतग सुजोइयाणं' तपनीय सुवर्ण के तरों के बने हुए जेबरा से ये सब के सब सुयोजित हैं । 'कामगमाणं, पीइगमाणं मणोगमाणं मणोरमाणं अमिय अबिल वीरिथ पुरिसक्कारपरक्कमाणं' इच्छानुसार इनका गमन होता है मनुष्यों को इनके गमन से बडा हर्ष होता है मन की जैसी तीव्र गति होती है वैसी तीव्र गति इनकी होती है ये मन को हरण करने वाले हैं इनकी स ंपन्न छे, 'पउमुप्पल सगलसुरभिमालाविभूसियाणं' सेमनी शोभा अखंडित याने અનુપમ ગંધશાલી કમળ અને ઉત્પલેની માળાએથી અધિક શાભાયમાન થઈ રહી છે, 'वहरखुराणं' सेमनी मेरी खेती भोवनी मनी होय, 'विविधविखुराणं' भनी ખરી ઉપર જે ચિખરી છે તે મણુિકનક આદિવાળી હાવાથી અનેક પ્રકારની છે—ાહિ यामयदंताणं' टिम्भय ोभना हांत छे, 'तवणिज्जजीहाणं' तससुवर्धुनी शेमनी कले! छे, 'तवणिज्जतालुयाणं' तपनीय सुवर्णुना खेभना ताजवा छे. 'तवणिज्जजोत्तग सुयोजियाणं' तयनीय सुवर्णुना तारना मजेसा नेतराय मा अधां सुयोजित थे. 'पीइगमागं, मगोगमाणं, मणोरमाणं, अमियगईणं, अमियबल वीरियपुरिसक्कार पर कमाणं' च्छानुसार એમનું ગમન થાય છે, મનુષ્યાને એમના ગમનથી ઘણા હર્ષોં થાય છે, મનની જેવી તીવ્રગતિ હાય છે તેવી તીવ્રગતિ એમની હાય છે, તે મનનુ હરણ કરનારા છે તેમની Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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