Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 488
________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू, २९ चन्द्रसूर्याणां विमानवाहकदेवसंख्यानि० ४७९ स्वर्णमयो मध्यभागेऽरुणत्वेन विशालौ इतर जीवापेक्षया विस्तीणौँ चञ्चलौ-स्वभावत एव चापल्य युक्तौ अतएव चलन्तौ इतस्ततश्वलायमानौ विमलौ-आगन्तुकमलरहितौ उज्ज्वलौ भद्र जातीयत्वात् बहिः श्वेतवणौँ कौँ येषां ते तथा तेषाम्, 'महुवण्ण भिसंतणिद्ध पत्तलनिम्मलतिवण्णमणिरयणलोयणाणं' मधुवर्ण भासमानस्निग्धपत्रलनिर्मल त्रिवर्ण मणिरत्नलोचनानाम, तत्र मधुवणे माक्षिकसदृशे 'भिसंत' भासमाने स्निग्धे पत्रले पक्षमवती निर्मले छायादि दोषरहिते त्रिवर्णे रक्तपीतश्वेतात्मक वर्णत्रययुक्ते मणिरत्नमये तत्तुल्ये लोचने नयने येषां ते तथा, तादृशानाम्, 'अब्भुग्गय मउलमल्लिया धवलसरिससंठियणिव्वण दढकसिण फालियामयसुजायदंतमुसलोवसोभियाण' अभ्युद्गत मुकुलमल्लिका धवल सदृशसंस्थित निव्रण दृढ कृत्स्न स्फटिकमय मुजात दन्तमुशलोपशोभितानाम्, तत्र अभ्युद्गतानि-अत्युन्नतानि मुकुलमल्लिकेव मुकुलितकुसुमवत् धवलानि-स्वच्छानि तथा सदृशं समं संस्थानं येषां तानि, तथा निर्बणानि-व्रणरहितानि दृढानि कृत्स्न स्फटिकमयानि-साअपेक्षा से विशाल स्वभावत चञ्चल, अत एव इधर उधर चलायमान, आगन्तुकमल विहीन, भद्रजातीय होने से उज्ज्वल, एवं बाहिर में श्वेतवर्ण के इनके दोनों कान होते हैं, 'महुवण्णभिसंतणिद्धपत्तलनिम्मल तिवण्ण मणिरयणलोयणाणं' इनके दोनों नेत्र माक्षिक-शहद-के वर्ण के जैसे वर्ण वाले होते हैं, चमकीले होते हैं, स्निग्ध होते हैं, पत्रल-पक्ष्म युक्त होते हैं, निर्मल-छायादि दोष से रहित-होते हैं, त्रिवर्ण-रक्त, पीत और श्वेत इन तीनों वर्गों से युक्त रहते हैं अत एव ऐसे प्रतीत होते हैं कि मानों ये मणिरत्न के ही बने हुए हैं 'अन्भुग्गयमउल मल्लिया धवलसरिससंठियनिव्वण दढकसिणफालियामय सुजायदंतमुसलोव सोभियाणं' ये मुसल के जैले ऐसे दांतों से शोभितमुख वाले होते हैं कि जो अभ्युद्गत होते हैं-अत्युन्नत होते हैं, मुकुलमल्लिका के जैसे-मुकुलित कुसुम के जैसे-धवल होते हैं, जिनका संस्थान एकसा होता है મય, ઈતર ની અપેક્ષાથી વિશાળ સ્વભાવ ચંચલ આથી આમ તેમ ચલાયમાન આગન્તુક મળવિહીનભદ્રજાતીય હોવાથી ઉજજવળ અને બહારના ભાગમાં શ્વેતવર્ણના मेमना मन जान डाय छ, 'महुवण्णभिसंतणिद्धपत्तल निम्मलतिवण्णमणिरयणलोयणाणं' એમના બંને નેત્ર માલિક-મધ-ના વર્ણન જેવા વર્ણવાળા હોય છે, ચમકીલા હોય છે, સ્નિગ્ધ હોય છે, પત્રલ-પકમ-યુક્ત હોય છે, નિર્મળ છાયાદિ ષથી રહિત હોય છે, ત્રિવર્ણ–રક્ત પતિ અને તે આ ત્રણે વર્ણોથી યુક્ત રહે છે આથી એવા પ્રતીત થાય छ । लणे या मणीरत्नना ४ पनेसा नहाय अव्भुग्गय मउलमल्लियाधवल सरिस संठिय निव्वणद्दढकसिण फालियामयसुजायदंतमुसलोवसोभियाणं' मुना l itथी શેભિત મુખવાળા હોય છે કે જે અબ્યુન્નત હેય છે-અન્નત હોય છે, મુકુલમલિકાના જેવા–સૂકલિત કુસુમના જેવા-સફેદ હોય છે જેમને આકાર એક સરખે જ હોય છે Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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