Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
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जम्मूछोपप्रतिस्त्रे विमानं नीला प्रचलन्ति इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा!' हे गौतम ! 'सोलसदेव साहस्सीओ परिवहति' षोडशदेवसहस्राणि परिवहन्तीति, एकैकस्यां दिशि चतुः चतुः सहस्राणां देवानां सद्भावात् अयं भावः-अत्र खलु चन्द्रादि देवानां विमानानि तथाजगत्स्वभावादेव निरालम्बनानि वहमानानि अवतिष्ठन्ति केवलं ये आभियोगिकादेवास्ते आभियोगिकनाम कर्मोदयबलात् उत्तमजातीयानां तुल्यजातीयानां हीनजातीयानां वा देवाना स्वकीय महिमातिशय दर्शनार्थ स्वकीयमात्मानं बहुमन्यमानाःप्रमोदमदभृतः अनवरत चलन शीलेषु विमानेष्वधः स्थित्वा केवन सिंहरूपाणि केवन गजरूपाणि केचन वृषभरूपाणि
नौवें द्वार की वक्तव्यता'चंद विमाणे णं भंते ! कइ देवसाहस्सीओ परिवहंति' टीकार्थ-श्रीगौतमस्वामी ने इस सूत्र द्वारा प्रभुश्री से ऐसा पूछा है-'चंदविमणे पं भंते ! हे भदन्त ! जो चंद्र विमान है उसे 'कइ देव साहस्सीओ परिवहति' कितने हजार देव-कितने हजार आभियोगिक जाति के देव-लेकर के चलते हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! सोलसदेव साहस्सोओ परिवहंति' हे गौतम! चन्द्र के विमान को १६ सोलह हजार देव लेकर के चलते हैं। एक एक दिशा में ऐसे चार २ हजार देव रहते हैं। यद्यपि चन्द्रादिक देवों के विमान स्वभावतः ही निरालम्बभूत हैं और इसी प्रकार से वे विना सहारे के चलते हैं परन्त जो आभियोगिक जाति के देव हैं वे आभियोगिक नाम कर्म के उदय के बलसे उत्तम जाति वाले देवों के, तुल्य जातीयवाले देवों के, अथवा हीन जातिवाले देवों के निरन्तर प्रचलनशील विमानों में अपनी महिमा का अतिशय दिखाने के निमित्त अपने आपको उनके विमानों के नीचे रहने में श्रेष्ठ मानते हुए
નવમા દ્વારની વ્યક્તવ્યતા 'चंद विमाणे णं भंते ! कइ देवसाहस्सीओ परिवहति' त्य.
साथ-गौतभाभी प्रस्तुत सूत्र द्वारा प्रभुने २॥ प्रमाणे पूछयु-चंदविमाणे भते! मत!२ यन्द्रीयमान छे तने-'कइ देव साहस्सीओ परिवहंति' enार દેવ-કેટલા હજાર આભિયોગિક જાતિના દેવ-લઈને ચાલે છે? આના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે
-गोयमा ! सोलसदेवसाहस्सीओ परिवहंति' गौतम ! यन्द्रना विमानने १६ सोग હજાર દેવ લઈને ચાલે છે. એક–એક દિશામાં આવા ચાર-ચાર હજાર દેવ રહે છે. જોકે ચન્દ્રાદિક દેના વિમાન સ્વભાવતઃ જ નિરાલ...ભૂત છે–અને આ પ્રકારથી તેઓ વગર સહારે ચાલે છે. પરંતુ જે આભિગિક જાતિના દેવ છે તેઓ આભિગિક નામકમના ઉદયના બળથી ઉત્તમ જાતિવાળા દેના તુલ્યજાતીયવાળા દેવના અથવા હીનજાતિવાળા રવાના નિરન્તર પ્રચલનશીલ વિમાનમાં પિતાના મહિમાનું પ્રાબલ્ય દર્શાવવાના નિમિત્તે પોતે પોતાની જાતને તેમના વિમાનની નીચે રહેવામાં જ શ્રેષ્ઠ માનતા થકાં આનન્દ
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