Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 436
________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू. २६ मासपरिसमापकनक्षत्रनिरूपणम् ४२७ चतुरङगुलपौररुष्या छायया पूर्योऽनुपर्यटते परावर्तते इत्यर्थः 'तस्सणं मासस्स' तस्य खड मासस्य 'चरिमदिवसे' चरम दिवसे 'दोपया चत्तारिय अंगुला पोरिसी भवई' द्वेपदे चत्वारि चाङ्गुलानि पौरुषी भवति इति प्रथममासपरिसमापकनक्षत्रम् ॥ 'वासाणं भंते !' वर्षाणां भदन्त ! 'दोच्चं मास कइणक्खत्ता णेति' द्वितीय भाद्रपदलक्षणं मासं' कति कियत्संख्यकानि नक्षत्राणि नयन्ति-परिसमापयन्तीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' हे गौतम ! 'चत्तारि' चत्वारि नक्षत्राणि परिसमापयन्तीति, तानि कानि तत्राह-'तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा-'धणिहा सयभिसया पुत्वभवया उत्तरभदवया' धनिष्ठाशतभिषा पूर्वभाद्रपदा उत्सरभाद्रपदा, तदेतानि चत्वारि नक्षत्राणि वर्षाकालस्य द्वितीयभाद्रपदमास परिसमापयन्ति । तत्र 'धणिहाणं चउद्दस अहोरत्ते णेइ' धनिष्ठा नक्षत्रं खलु चतुर्दशाहोरात्रान् नयति-चतुर्दशाहोरात्राम् परिसमापयतीत्यर्थः 'सयभिसया सत्त अहोरत्ते णेई' शतभिषा नक्षत्रं सप्ताहोपात को 'सि च णं मासंमि चउरंगुल पोरसीए छायाए सरिए अणुपरियहई' इस सूत्रों द्वारा सूत्रकारने प्रकट किया है कि उस महीने में अर्थात् अन्त के दिन चार अंगुल से अधिक पौरुषीरूप छाया से युक्त सूर्य परिभ्रमण करता है 'तस्म णं मासस्स चरिमदिवसे दो पया चत्तारिय अंगुला पोरिसी भवई' उस मास के अन्तिम दिवस में दो पद वाली और चार अंगुलों वाली पौरुषी होती हैं इस प्रकार का यह कथन प्रथम मास परिसमापक चार नक्षत्रों के संबंध में कहा गया है। ___ 'वासाणं भंते ! दोच्चं मासं कह णक्खत्ता ऐति' हे भदन्त ! वर्षाकाल के द्वितीय मास रूप भाद्रपद मास के परिसमापक कितने नक्षत्र होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा ! चत्तारि' हे गौतम ! चार नक्षत्र वर्षाकाल के भाद्रपद मास के परिसमापक होते हैं, 'तं जहा' उनके नाम इस प्रकार से हैं'धणिट्ठा, सयभिसया पुव्वभवया, उत्तरभद्दवया' धनिष्ठा, शतभिषक, पूर्वभाद्रपदा और उत्तरभाद्रपदा, इनमें 'धणिट्ठा णं चउद्दस अहोरत्ते जेई' धनिष्ठा मपि पौ३५ी थाय छ मा ४थन- 'तं सि च णं मासंमि चउरंगुलपोरसीए छायाए सूरिप अणुपरियट्टई' 20 सूत्री ॥२॥ सूत्र४.२ ५४८ ४यु छ । ते मलिनामा अर्थात् અન્તના દિવસે ચાર આંગળથી અધિક પૌરૂષીરૂપ છાયાથી યુક્ત સૂર્ય પરિભ્રમણ કરે છે. 'तस्स णं मासस्स चरिमदिवसे दो पया चत्तारिय अंगुला पोरिसी भवइ' ते भासन मन्तिम દિવસમાં બે પદવાળી અને ચાર આંગળવાળી પૌરૂષી હોય છે આ પ્રકારનું આ કથન પ્રથમ માસ પરિસમાપક ચાર નક્ષત્રના સંબંધમાં કરવામાં આવ્યું છે. _ 'वासाणं भंते ! दोच्चं मासं कह णक्खत्ता ऐति' 3 महन्त ! वर्षान वितीय भास રૂ૫ ભાદ્રપદ (ભાદરવા) માસના પરિસમાપક કેટલા નક્ષત્ર હોય છે? આના જવાબમાં प्रभु ४९ छ-'गोयमा ! चत्तारि' गौतम ! यार नक्षत्र वर्माना भाद्रप४ भासन। परिसभा५४ डाय छे. 'तं जहा' तेमना नाम मा प्रभारी छे–'धनिट्ठा, सयभिसया पुवभरगया, उत्तरभवया' पानी, Aalल भने Gत्ताप, मा 'पणिदाणं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562