Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
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प्रकाशिका टीका - सप्तमवक्षस्कारः सू. २५ नक्षत्राणां कुलादिद्वारनिरूपणम्
७ फल्गुनी नक्षत्रे भवा फाल्गुनी पूर्णिमा 'चेत्ती ८' चैत्री चित्रायां भवा चैत्री ' वहसाही' ९ वैशाखी विशाखायां भवा वैशाखी 'जेहामूली' १० ज्येष्ठामूली ज्येष्ठायां मूले च भवा जेष्ठा ११ मूली १२ 'आसाठी' आषाढी इति । यद्यपि प्रश्नसूत्रे पूर्णिमाऽमावास्योर्भेदेन निर्देशः कृतः उत्तरसूत्रेषु यद् भेदेन द्वयो निर्देश स्तद् द्वयो नमैिक्यदर्शनार्थम् तेनामावास्या अपि श्राविष्ठी प्रोष्ठपदी अश्वयुजी इत्यादिभिः व्यपदेष्टुं योग्या भवन्त्येवेति । नतु श्राविष्ठी पूर्णिमा धनिष्ठापरपर्यायश्रविष्ठा योगाद् भवति श्राविष्ठी अमावास्यातु म श्रविष्ठा योगात्, अमावास्याया अश्लेषामघा योगस्य प्रतिपाद्यमानत्वादिति वेदत्रोच्यतेऔर अमावास्या पौषी पूर्णिमा और अमावास्या है 'माही' मघा नक्षत्र में होने वाली पूर्णिमा और अमावास्या माघी पूर्णिमा और अमावास्या होती है 'फग्गुणी' फल्गुनी नक्षत्र में होने वाली पूर्णिमा और अमावास्या फाल्गुनी पूर्णिमा और अमावास्या होती है 'चेती' चित्रा नक्षत्र में होने वाली पूर्णिमा और अमावास्या चैत्री पूर्णिमा और अमावास्या होती है 'बसाही' विशाखा नक्षत्र में होने वाली पूर्णिमा और अमावास्या वैशाखी पूर्णिमा और अमावास्या होती है 'जेट्ठा मूली' ज्येष्ठा नक्षत्र में और मूल नक्षत्र में होने वाली पूर्णिमा और आमावास्या ज्येष्ठा मूली पूर्णिमा और अमावास्या होती है 'आसाठी' इसी प्रकार अषाढी पूर्णिमा और अमावास्या के सम्बन्ध में जानना चाहिये इस प्रकार से ये १२ महीनों की १२ अमावास्याएं और १२ पूर्णिमाएं होती हैं । यद्यपि प्रश्न सूत्र में पूर्णिमा और अमावास्या इन दोनों का भेदपूर्वक निर्देश किया गया है और उत्तर में जो अभेद से दोनों का निर्देश हुआ है वह दोनों में ऐक्यपकट करने के लिये हुआ है इस कारण अमावास्याएं भी श्रविष्ठी प्रोष्ठपदी, अश्वयुजी, इत्यादि रूप से व्यपदिष्ट होने के योग्य होती ही हैं ।
भावनारी पूर्णिमा भने अमावस्या पोषी पूर्णिमा अने सभावस्थाले 'माही' भा નક્ષત્રમાં આવતી પૂર્ણિમા અને અમાવસ્યા માઘી પૂર્ણિમા અને અમાવસ્યા કહેવાય છે. 'फग्गुणी' इह्गुनी नक्षत्रमां थनारी पूर्णिमा भने सभावास्या हिगुनी पूर्णिमा भने અમાવાસ્યા છે. ચેતી’ચિત્રા નક્ષત્રમાં આવતી પૂર્ણિમા અને અમાવાસ્યા ચૈત્રી પૂર્ણિમા अने अभावास्या होय छे. 'वाइसाही' विशाखा नक्षत्रमां यावती पूर्णिमा भने गभावास्या वैशाख पूर्णिमा भने अभावास्या वा छे. 'जेट्ठामूली' येण्डा नक्षत्रमां भने भूल नक्षत्रमां આવતી પૂર્ણિમા અને અમાવાસ્યા જ્યેષ્ઠામૂર્તી પૂર્ણિમા અને અમાવાસ્યા કહેવાય છે. 'आसाढी' खेत्री रीते भाषाठी पूर्णिमा भने अभावास्याना सम्बन्धमा लागुवु लेहये. આ પ્રમાણે આ ૧૨ માસની ૧૨ પૂર્ણિમા અને ૧૨ અમાવાસ્ખાએ જાણવી એ કે પ્રશ્ન સૂત્રમાં પૂર્ણિમા અને અમાવાસ્યા એ બંનેને ભેદપૂર્વક નિર્દેશ કરવામાં આવ્યે છે અને ઉત્તરમાં જે અભેદ્યથી ખનેના નિર્દેશ થયેલા છે તે અનેમાં એકતા પ્રગટ કરવાના આશયથી થયેલ છે આ કારણે અમાવાસ્યા પશુ શ્રાવિડી, પૌષ્ઠપદી, અશ્વયુજી ઇત્યાદ્ધિ રૂપથી વ્યપર્દિષ્ટ થવાને ચેાગ્ય હાય જ છે,
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