Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १२ समवसरणस्वरूपनिरूपणम् २६३ आहुः-कथयन्ति । यद्वा-'छलायतणं' छलायतनम्-छलानां-कपटानाम् आयतनं -स्थानं छलायतनम् एतादृशम् 'कम्म' कर्म कुर्वन्तीति ॥५॥ मूलम्-ते एवमक्खंति अबुज्झमाणा,
विरूवरूवाणि अकिरियवाई। जे मायइत्ता बहवे मैणूसा,
भवंति संसौरमणोवदग्गं ॥६॥ छाया-ते एवमाख्यान्त्यबुद्धयमाना, विरूपरूपाण्यक्रियावादिनः ।
यान्यादाय बहवो मनुष्या, भ्रमन्ति संसारमनवदग्रम् ॥६॥ दत्त के पास नयाकम्बल हैं। किन्तु छलवादी इस अर्थ को छोड़कर 'नव' शब्द में संख्या का आरोप कर लेता है और कहता है-देवदत्त के पास नौ कंबल कहां हैं ? ये अक्रियावादी भी इसी प्रकार छल का प्रयोग करते हैं ॥५॥ 'ते एवमक्खंति' इत्यादि।
शब्दार्थ-'ते-ते' वे पूर्वोक्त 'अकिरियावाई-अक्रियावादिनः' वस्तु. स्वरूपको न समझने वाले चार्वाक बौद्ध आदि अक्रियावादी 'अबुज्झमाणा-अबुध्यमानाः' सदसबोध न जानते हुए 'एवं 'एवं-एवम्' इस प्रकार से विरूवरूवाणि-विरूपरूपाणि' अनेक प्रकार के शास्त्रां का 'अक्खंति-आख्यान्ति' कथन करते हैं 'जे मायइत्ता-यमादाय' जिन शास्त्रोंका आश्रयलेकर 'बहवे मणूसा-चहवो मनुष्या' बहुतसे अज्ञानी દેવદત્તની પાસે નવી કાંબળે છે. પરંતુ છલવાદી આ અર્થને છોડીને નવ શબ્દમાં સંખ્યાને આરેપ કરી લે છે, અને કહે છે કે દેવદત્તની પાસે નવ કાંબળે કયાં છે? આ અક્રિયાવાદીયે પણ એજ પ્રમાણે છળને પ્રગ કરે છે. પા ___ 'ते एवमकखंति' त्याह
शहाथ-'ते-ते' से ५२ ४ामा मापेर 'अकिरियावाई-अक्रियावा. दिनः' परतुन। यथा पान न समपा व या मौद्ध विगैरे मा. यावाहियो 'अबुज्झमाणा-अबुध्यमानाः' सहसमाधने नसभा एवंएवम्' माथी विरूवरूवाणि-विरूपरूपाणि' मने प्रारना शास्त्रानु 'अक्खति-आख्यान्ति' ४यन रे छ. 'जे मायइत्ता-यमादाय' रे शास्त्रोन। माश ने 'बवे मणूसा-बहवो मनुष्याः' । मे। अज्ञानी मनुष्य।
श्री सूत्रकृतांग सूत्र : 3