Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 499
________________ ४८८ सूत्रकृताङ्गसूत्रे अन्वयार्थः-यः घातिकर्मचतुष्टयान्तकत्वेन (वितिगिच्छाए) विचिकित्सायाः संशयविपर्ययमिथ्याज्ञानरूपायाः (अंतए) अन्तको विनाशको भवति (से) स: (अणेलिस) अनीदृशम्-अनन्यसदृशं धर्म (जाणइ) जानाति । यः अनीदृशस्य ज्ञाता भवति स एव (अणेलिसस्स) अनीदृशस्य अनन्यसदृशस्य धर्मस्य (अक्खाया) आख्याता कथयिता भवति । एतादृशः (से) स: महापुरुषः (तहि तहिं) तत्र तत्र बौद्धादिदर्शने (ण होइ) न भवति, अनीशस्याज्ञायकत्वादिति ॥२॥ 'अंतए' इत्यादि। शब्दार्थ-जो चारों प्रकार के घातिया कर्म का नाश करने वाले होने से 'वितिगिच्छाए-विचिकित्सायाः' मिथ्याज्ञान रूप संशयविपर्यय का अंतए-अन्तक' नाशकरने वाले होते हैं 'से-सः वह 'अणेलिसं -अनीदृशम्' अनन्य साधारण ऐसे धर्म को 'जाणइ-जानाति' जानते हैं 'अणेलियस्स-अनीदृशस्य' जो पुरुष सबसे अधिक वस्तुतत्वका 'अक्खाया-आख्याता' कथन करने वाले हैं ऐसा 'से-स:' वह पुरुष 'तहि तहि-तत्र तत्र' ऊस ऊस बौद्धादि दर्शनों में 'ण होइ-न भवति' नहीं होता है ॥२॥ ___ अन्वयार्थ-जो चारों घातिकमों का अन्त करने वाला होने के कारण विचिकित्सा अर्थात् संशय, विपर्यास रूप मिथ्याज्ञान का अन्त करने वाला है, वह अनन्यसहश-अनुपम-धर्म को जानता है। जो अनन्यसदृश धर्म को जानता है, वही अनन्यसदृश धर्म का प्रतिपादक होता है। ऐसा पुरुष चौद्ध आदि अन्य दर्शनों में नहीं होता ॥२॥ अंतए' त्याह, શદાર્થ–જેમાં ચાર પ્રકારના ઘાતિયા કમેને નાશ કરનારા હોવાથી 'वितिगिच्छाए-विचिकित्सायाः' मिथ्याज्ञान ३५ संशय विषय यनी 'अंतएअन्तकः' नाशपाय छे. 'से-सः' ते 'अणेलिसं-अनीदृशम्' अनन्य साधारण सेवा धर्मन 'जाणइ-जानाति' से छे. 'अणेलियस्स-अनीशस्य' रे ५३५ साथी पारे १२तुतत्पनु 'अक्खाया-आख्याता' थन ४२१ावा छे. येवो 'से-सः' ते ५३५ “तहिं तह-तत्र तत्र' ते ते मौद्ध विगेरेना शनीमा ‘ण होइ-न भवति' हात नथी ॥२॥ અન્વયાર્થ—જે ચારે ઘાતિયા કર્મોના અંત કરવાવાળા હોવાથી વિચિકિત્સા અર્થાત્ સંશય વિપસ રૂપ મિથ્યાજ્ઞાનનો અંત કરવાવાળા છે. તે અનન્ય સંદેશ–અનુપમ ધર્મને જાણે છે. જે અનન્ય સદશ ધર્મને જાણે છે. તેજ અનન્ય સદશ ધર્મના પ્રતિપાદક હોય છે, એ પુરૂષ બૌદ્ધ વિગેરે અન્ય દર્શકમાં હોતો નથી, પરા श्री सूत्रता सूत्र : 3

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