Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
समयार्थबोधिनी टीका प्र.श्रु. अ. १५ आदानीयस्वरूपनिरूपणम् ५५७
अन्वयार्थः-(तहागया) तथागताः-अपुनरावृत्या गताः मोक्षं प्राप्ताः (मेहावी) मेधाविनः केवलज्ञानिनः तीर्थकरगणधरादयः (कयाइ) कदाचित्-कस्मिश्चिदपिकाले (को) कुतः कथं केन प्रकारेण (उप्पज्जति) उत्पद्यन्ते इति भावः (अप्पडिन्ना) अपतिज्ञाः अनिदानाः आशंसारहिताः (तहागया) तथागता तीर्थकरगणधरादयः (अणुत्तरा) अनुत्तरा लोकोत्तरं केवलदर्शनवन्तः (लोगस्स) लोकस्य-जीवसमूहस्य (चक्खू) चक्षुः-चक्षुरिव चक्षुः सदसदर्थप्रदर्शकत्वान्नेत्रभूताः सन्तीति ॥२०॥ प्राप्त 'मेहावी-मेधाविनः' केवलज्ञान वाले तीर्थकर गणधर आदि 'कयाइ-कदाचित्' किसी भी कालमें 'कओ-कुतः' किस प्रकारसे उपज्जति-उत्पद्यन्ते' उत्पन्न होता है ? अर्थात् उत्पन्न नहीं होता है 'अपडिन्ना-अप्रतिज्ञाः' निदान रहित 'तहागया-तथागताः' तीर्थंकर गणधर
आदि 'अणुत्तरा-अनुत्तराः' लोकोत्तर केवलज्ञान और केवल दर्शन वाले 'लोगस्स-लोकस्य' जीवसमूह के 'चक्खू-चक्षुः' नेत्रभूत कहे जाते हैं ॥२०॥ __अन्वयार्थ--जो पुनरागमन से रहित होकर मोक्ष को प्राप्त हुए हैं और मेधावी अर्थात् केवलज्ञानी हैं, वे क्या किसी समय किसी प्रकार जन्म लेते हैं ? अर्थात् उनका कभी पुनर्जन्म नहीं हो सकता। वे सब प्रकार की कामना से रहित, लोकोत्तर केवल-ज्ञान-दर्शन से सम्पन्न तीर्थंकर गणधर आदि जीवों के लिए चक्षुरूप होते हैं अर्थात् सत् असत् पदार्थों के प्रदर्शक होने के समान होते हैं ॥२०॥ प्राप्त वो ‘मेहावी-मेधावीनः' अवज्ञानवाणा ताय ४२ गय२ बिगर 'कयाइ-कदाचित्' ५५ ॥णे 'कओ-कुतः' ४॥ ४२थी 'उप्पज्जंति-उत्पद्यन्ते' इत्पन्न थाय छे? मर्थात् ५न्न थता नथी. 'अपडिन्ना-अप्रतिज्ञा' निहान हित 'तहागया-तथागताः' तीथ ४२ मध२ विगेरे 'अणुत्तरा-अनुत्तराः' सत्तर व ज्ञान मन उस शनवाणा 'लोगस्स-लोकस्य' ७१ समूडन 'चक्खू-चक्षुः' नेत्र३५ ४पाय छे. ॥२०॥
અન્વયાર્થ-જે પુનરાગમનથી રહિત થઈને મોક્ષને પ્રાપ્ત થયા છે, અને મેધાવી અર્થાત્ કેવલજ્ઞાની છે, તેઓ શું કઈ સમયે કઈ પણ પ્રકારે જન્મ ગ્રહણ કરે છે ? અર્થાત્ તેઓને પુનર્જનમ કેઈ પણ વખતે થતું નથી. તેઓ બધા પ્રકારની કામનાઓથી રહિત લકત્તર કેવળ જ્ઞાન દશ નથી યુક્ત તીર્થકર ગણધર વિગેરે જે માટે નેત્ર રૂપ હોય છે. અર્થાત સત અસત્ પદાર્થોને બતાવવાળા હોવાથી નેત્રરૂપ હોય છે. પરવા
श्री सूत्रकृतांग सूत्र : 3