Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 560
________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १५ आदानीयस्वरूपनिरूपणम् ५४९ मूलम्-अणुत्तरे ये ठाणे से कासवेण पवेईए। जे किच्चा णिवुडा एंगे नि,' पौवंति पंडिया ॥२१॥ छाया-अनुत्तरं च स्थानं तत् काश्यपेन प्रवेदितम् । ___यत्कृत्वा निर्टता एके निष्ठां प्राप्नुवन्ति पण्डिताः ॥२१॥ अन्वयार्थः-(से य) तच्च शास्त्रमसिद्धम् (अणुतरे) अनुत्तरम् , न उत्तरं यस्मात् तत् तपः संयमादिरूपम् (ठाणं) स्थानं संयमानुष्ठानरूपं (कासवेण) काश्यपेनकश्यपगोत्रीयश्रीवर्धमानस्वामिना (पवेइए) प्रवेदितम्-प्ररूपितम् (ज) यद्अनुत्तरं स्थानं (किच्चा) कृत्वा समाराध्य (एगे) एके केचन महापुरुषाः (निव्वुडा) निवृताः कषायानलनाशेन शीतलीभूताः अतएव (पंडिया) पण्डिता:पापमीरवो मुनयः (निह) निष्ठां संसारपर्यवमानरूपां सिद्धिम् (पावंति) प्राप्नु वन्ति मोक्षं गच्छन्तीति भावः ॥२१॥ 'अणुत्तरे य ठाणे से' इत्यादि। शब्दार्थ-'से य-तच्च' शास्त्रप्रसिद्ध 'ठाणे-स्थानम्' संयमानुष्ठानरूप स्थान 'कासवेण-काश्यपेन' काश्यपगोत्रवाले श्री वर्धमान स्वामीने पवेइए-प्रवेदितम्' प्ररूपित किया है 'जं-ठाणं-यत्स्थानम् जो स्थान अनुत्तर तप संयम आदि 'किच्चा-कृत्वा' करके 'एगे-एके कोई महापुरुष 'निम्बुडा-निवृताः' निवृत्त होते हैं अतः 'पंडिया-पण्डिता' पोप भीरु बुद्धिमान मुनि 'निटं-निष्ठाम्' संसार के अन्तको 'पावंति-प्राप्नुवन्ति' प्राप्त करते हैं ॥२१॥ अन्वयार्थ--काश्यगोत्रीय श्री वर्धमान स्वामी के द्वारा प्ररूपित संयम रूप स्थान सर्वोत्तम स्थान है, जिसकी आराधना करके अनेक 'अणुत्तरे य ठाणे से' त्या शहाथ-'से य-तच्च' । प्रसिद्ध 'ठाणे-स्थानम्' सयभानु हान ३५ स्थान 'कासवेण-काश्यपेन' ॥श्य५ गोत्र श्री १५मान स्वाभीमें 'पवेइए प्रवेदितम्' ५३पित यु छे. 'जं ठाणं-यत् स्थानम्' २ स्थान मनुत्तर त५ सयम विगैरे 'किच्चा-कृत्वा' ४ीने 'एगे-एके' ४ मा५३५ ‘निव्बुडा-निवृताः' निवृत्त थाय छे. 'अतः ‘पंडिया-पण्डिताः' ५.५ मि३ भुद्धिमान मुनि 'निर्दु-निष्ठाम्' सारना मतने 'पावंति-प्राप्नुवन्ति' प्राप्त ४२ छ. ॥२१॥ અન્વયાર્થ–કાશ્યપ ગોત્રીય શ્રીવર્ધમાન સ્વામી દ્વારા પ્રરૂપિત સંયમ રૂપ સ્થાન સર્વોત્તમ સ્થાન છે. જેની આરાધના કરીને અનેક મહાપુરૂષ श्री सूत्रतांग सूत्र : 3

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