Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 567
________________ सुत्रकृताङ्गसूत्र अन्वयार्थः--(जं सबसाहूणं मयं) यत्सर्वसाधूनां मतं संयमस्थानरूपं (तं मयं) तन्मतं (सल्लगत्तणं) शल्यकर्तनं-शल्यस्य ज्ञानावरणीयाधष्टविधकर्मणः कर्त्तनं राशकं भवति, अतः (तं) तन्मतं संयमानुष्ठानरूपं (साहइत्ताण) साधयित्वा सम्यक्समाराध्य बहवः संसारसागरं (तिन्ना) तीर्णाः-पारं प्राप्ताः । वा-अथवा ये अवशिष्टकर्माणः यदि भवेयुस्ते (देवा) देवाः-सौधर्मादयः अनुत्तरोपपातिका वा देवाः (अभविसु) अभूवन ते ततश्च्युत्वा मनुष्यभवे सेत्स्यन्तीति भावः ॥२४॥ साधुओं को मान्य है 'तं मयं-तन्मतं' वही मत 'सल्लगत्तणं-शल्यकर्तनम्' शल्यज्ञानावरणीयादि आठ प्रकार के कर्म को काटने वाला होता है अतः 'तं मयं-तन्मतम्' संयमानुष्ठान रूप उस मतको 'साहइत्ताणसाधयित्वा' आराधित करके बहुत से लोक संसारसागर को 'तिन्नातीर्णाः' तैर गये हैं अथवा 'देवा-देवाः' सौधर्मादि अथवा अनुत्तरोपपातिक देव 'अभविंसु-अभूवन्' हुए हैं वे वहांसे चवकर मनुष्यभवमें उत्पन्न होते हैं ॥२४॥ ___ अन्वायर्थ--समस्त साधुओंका जो मत है, वही मत ज्ञानावरणीय आदि आठ प्रकार के कर्म का विनाशक है। अतएव उस संयमानुष्ठान रूप मत की सम्यक् आराधना करके बहुत से जीव संसार सागर से पार हुए हैं। जिनके कर्म शेष रह गए वे सौधर्म आदि या अनुत्तरो. पपातिक देव हुए हैं। वहांसे च्यव कर और मनुष्य भव प्राप्त करके वे सिद्धि प्राप्त करेंगे ॥२४॥ बनाने मान्य डाय 'तं मयं-तन्मतम्' मत 'सल्लगत्तणं-शल्यकर्त्तनम्' શલ્ય-અર્થાત જ્ઞાનાવરણીયાદિ આઠ પ્રકારના કર્મને કાપવાવાળા બને છે. તેથી 'तं मयं-तन्मतम्' सयभना अनुठान ३५ मे मतने 'साहइत्ताण-साधयित्वा' माधित प्रशन घa ससार सारने 'तिन्ना-तीर्णाः' तरी या छ, मथ! 'देवा-देवाः' सोयाहि १२१॥ अनुत्त।५५ाति १ 'अभविंसु-अभू. पन्' च्या छे. तो त्यांथी यवान मनुष्य सभा पन थाय छे. ॥२४॥ અન્વયાર્થ–-સઘળા સાધુઓને જે મત છે. એજ મત જ્ઞાનાવરણીય વિગેરેઆઠ પ્રકારના કર્મને વિનાશક છે. તેથી જ એ સંયમાનુષ્ઠાન રૂ૫ મતની સમ્યક્ આરાધના કરીને ઘણું જ સંસાર સાગરથી પાર ઉતર્યા છે. જેમના કર્મ બાકી રહ્યા તેઓ સૌધર્મ વિગેરે અથવા અનુત્તરપાતિક દેવ બન્યા છે. ત્યાંથી ચવીને અને મનુષ્ય ભવ પ્રાપ્ત કરીને તેઓ સિદ્ધિ પ્રાપ્ત કરશે રજા श्री सूत्रतांग सूत्र : 3

Loading...

Page Navigation
1 ... 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596