Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
________________
५२४
-
o
-maramanane
w
s
____ सूत्रकृताङ्गसूत्रे इच्छाराहित्यात् , यतः संयमयत्नत्यात् , दान्तः इन्द्रिय नोइन्द्रियदमनशीलस्वात् , दृढः अनुकूलपतिकूलोपसगैरविचलनीयत्वात् , आरतमैथुनः भोगेच्छारहितत्वात् । य एतादृशोऽनुशासको भवेत् स एव मोक्षाभिमुखो भवितुमर्हतीति भावः ॥११॥ मूलम्-णीवारे व ण लीएजा छिन्नसोए अणाविले ।
अणाउले सया दंते संधि पत्ते अणेलिसं ॥१२॥ छाया-नीवार इव न लीयेत छिन्नस्रोता अनाविलः ।
____ अनाकुलः सदा दान्तः संधि प्राप्तोऽनीदृशम् ।।१२।। मोदन न करके अपनी सेवा का आस्वादन न करे, इच्छा रहित होने के कारण निस्पृह हो, संथम में यतनावान हो, इन्द्रियों का और मन का दमन करने वाला हो, अनुकूल और प्रतिकूल परीषह और उपसर्गों से चलायमान न होने के कारण दृढ हो तथा भोग की इच्छा से रहित होने के कारण मैथुन त्यागी हो। जो ऐसा अनुशासक होता है, वही मोक्षाभिमुख हो सकता है ॥११॥ 'णीवारेव ण लीएज्जा' इत्यादि।
शब्दार्थ-मैथुन को त्याग करने वाला मुनि ‘णीवारेव-नीवार इव' जालमें बांधने के लिए उसमें डाले हुए धान्य में कपोत आदि प्राणियों के जैसे 'ण लीएज्जा-न लीयेत' स्त्रीसंग में लीन न हो अर्थात् साधु स्त्री सेवन न करे 'छिन्नसोए-छिन्नस्रोता:' जिसने विषयभोग रूप आश्रवद्वार को काट डाला है, अत एव 'अणाविले-अनाविलः' रागપોતાની સેવાનું આસ્વાદન ન કરે. ઈચ્છા રહિત હોવાના કારણે નિસ્પૃહ હોય, સંયમમાં યતનાવાન્ હોય, ઈન્દ્રિય અને મનનું દમન કરવા વાળા હોય, અનુકૂળ અને પ્રતિકૂળ પરીષહ અને ઉપસર્ગોથી ચલાયમાન ન હોવાને કારણે દઢ હાય, તથા ભેગની ઈરછાથી રહિત હોવાથી મૈથુનને ત્યાગ કર. વાવાળા હોય, આવા જે ઉપદેશક હોય છે, એજ મેક્ષમાં જવાની ઈચ્છા વાળા-મેક્ષાભિમુખ હોઈ શકે છે. ૧૧ ___णीवारेव ण लीएज्जा' त्या
Avथ--भैथुनना त्या ४२वापाको भुनि ‘णीवारेव-नीवार इव' anuvi ફસાવવા માટે તેમાં નાખવામાં આવેલ ધાન્યમાં કબૂતર વિગેરે પક્ષિઓની रंभ 'ण लीएज्जा-न लीयेत' खीसभा सीन न थ अर्थात् साधुसे शान सेवन न ४२ 'छिन्नसोए-छिन्नस्रोताः' विषय मे ३५ भासप वारने छेदी नाभ्यु छ मतमेव 'अणाविले-अनाविल:' द्वेष माह मथा २ हित मेव 'अणाउले-अनाकुलः' स्वस्थ वित्त मनीन 'सया
श्री सूत्रकृतांग सूत्र : 3