Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 544
________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र.श्र. अ. १५ आदानीयस्वरूपनिरूपणम् ५३३ अन्वयार्थ:--(धीरा) धीराः-परीषहोपसर्गसहनशीलाः (अंताणि) अन्तान्अन्नमान्तान् आहागन् (सेवंति) सेवन्ते (तेण) तेनान्तपाताहारसेवनेन (इह) इह संसारे (अंतकरा) अंतकराः-सर्वदुःखानामन्तकारिणो भवन्ति अतस्त एवान्तप्रान्ताहारिणः (णरा) नरा (इह) इह (माणुस्सए ठाणे) मानुष्यके स्थाने मनुष्य. लोके (धम्म) धर्म-सम्यग्ज्ञानदर्शनचारित्ररूपम् (आराहिउं) आराधितुं-सम्यगा. चरितुं योग्या भवन्ति नान्ये इति ॥१५॥ टीका--पूर्वगाथोक्तमेवार्थ विशदयति-धीरा' धोराः-देवतिर्यगमनुष्यक:परीषहोपसर्गसहनशीलाः सदसद्विवेकवन्तः: 'अंताणि' अन्तान्-वल्लवणकादिनिष्पादिताम्लतक्रमिश्रितपर्युषितरसवनिताहारान् अथवा शब्दादिविषयान्तान् शब्दादिविषयत्यागान सेवति' सेवन्ते 'तेण' तेन हेतुना इह' इस संसारे 'अंजधर्मम्' सम्यक् दर्शन ज्ञान चारित्र रूप धर्म को 'भाराहि-आराधितु' आराधन करने में योग्य होता है ॥१५॥ अन्वयार्थ-धीर पुरुष अन्त प्रान्त आहार का सेवन करते हैं। अन्त प्रान्त आहार का सेवन करने से वे समस्त दुःखों का अन्त करने वाले होते हैं। ऐसे ही पुरुष इस मनुष्यलोक में धर्म की आराधना करने के योग्य होते हैं ॥१५॥ टीकार्थ--पूर्वगाथा में कथित अर्थ का स्पष्टीकरण किया जाता है धीर अर्थात् देव, तिर्यच और मनुष्य कृत उपसर्गो को सहन करने. वाले, सत् असत् के विवेक से युक्त साधु वल्लचना आदि के बने हुए अन्न, खट्टे, छाश से मिले हए एवं नीरस आहार का सेवन करते हैं अथवा शब्दादि विषयों के परित्याग का सेवन करते हैं, अतएव वे मनुष्य सभा 'धम्म-धर्मम्' सन्यशन ज्ञान यारित्र ३५ धमन 'आरा. हिउ-आराधितुम्' माराधना ४२वाने योग्य थाय छे. ॥१५॥ અન્વયાર્થ-ધીર પુરૂષ અંત પ્રાન્ત આહારનું સેવન કરે છે. અતપ્રાન્ત આહારનું સેવન કરવાથી તેઓ સઘળા દુઃખના અન્ત કરવાવાળા હોય છે. એવાજ પુરૂષ આ મનુષ્ય લેકમાં ધર્મની આરાધના કરવાને ગ્ય હોય છે. ૧૫ ટીકાથ–પહેલાની ગાથામાં કહેલ અર્થનું સ્પષ્ટીકરણ કરવામાં આવે છે.-ધીર અર્થાત્ દેવ, તિર્યંચ અને મનુષ્ય કૃત ઉપસર્ગોને સહન કરનાર, સત્ અસલૂના વિવેકથી યુક્ત સાધુ વહેલ-વાલ-ચણા વિગેરેથી બનેલા પદાર્થ ખાટી છાશથી મળેલા અને નીરસ આહારનું સેવન કરે છે. અથવા શબ્દાદિ વિષયના પરિત્યાગનું સેવન કરે છે, તેથી જ તેઓ સંસાર સાગરને અથવા श्री सूत्रता सूत्र: 3

Loading...

Page Navigation
1 ... 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596