Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 508
________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १५ आदानीयस्वरूपनिरूपणम् ४९७ अतो जिनोक्तचनाराधको मुनिः ‘सया' सदा-सर्वकालम् 'सच्चेण' सत्येन-सत्यभाषणेन, यद्वा सत्यः सद्भ्यः प्राणिभ्यो हितकरत्वात् सत्यः-संयमः, तेन तपो. विशिष्टेन संयमेन (संपन्ने)-संपन्नः युक्तः सन् 'भृएहि' भूतेषु समस्तमाणिवर्गेषु 'मिति' मैत्रीम्-प्राणिनां रक्षणात् रक्षणोपदेशदानेन च भूतदयारूपां 'कप्पर' कल्पयेत्-कुर्यात् न तेषु विराधनभावनां कुर्यादिति भावः ॥३॥ मूलम्-भूएहिं न विरुज्झेजा एस धम्मे वुसीमओ। बुसिमं जगं परिन्नाय, अस्सि जीवितभावणा॥४॥ छाया-भूतैश्च न विरुद्धयेत एष धर्मः वृषीमतः।। वृषीमान् जगत्परिज्ञाय, अस्मिन् जीवितभावना ॥४॥ अतएच जिनोक्त वचनों का आराधक मुनि सदैव सत्य से अर्थात् सत्य भाषण से अथवा संयम से युक्त हो कर समस्त जीवों पर, उनकी रक्षा कर के और रक्षा का उपदेश देकर दया करे। विराधना की भावना न करे ॥३॥ 'भूएहिं न विरुज्झेज्जा' इत्यादि। शब्दार्थ-मुनि किसी प्रकार से भी 'भूएहि-भूतेषु' त्रस स्थावर प्राणियों में 'न विरुज्जेज्जा-न विरुध्येत' विरोध भाव न करे 'एसएषा सर्व जीव रक्षणरूप यह 'धम्मे-धर्म:' धर्म “बुमीमो-वृषीमतः' सत् संयमवाले साधु का है अतः 'सिमं-वृषीमान्' संयमी साधु 'जगं-जगत् त्रस स्थावर रूप जगत् को 'परिन्नाय-परिज्ञायज्ञ परि અએવ ઇનોક્ત વચ્ચેનું આરાધન કરવાવાળા મુનિ હમેશાં સત્યથી અર્થાત્ સત્ય ભાષાણુથી અથવા સંયમથી યુક્ત થઈને સઘળા જીવોની રક્ષા કરીને અને રક્ષાનો ઉપદેશ આપીને તેઓની રક્ષા કરે. વિરાધનાની लापान ४२. ॥3॥ भूएहि न विरुज्जा ' या शाय-मुनि । ५५ ५२थी 'भूएहि-भूतेषु' स भने स्था१२ आणियोमा 'न विरुज्जेज्जा-न विरुध्येत' विशेष माय न राणे 'एस-एषः' स न २१॥ ३५ मा 'धम्मे-धर्मः' म 'वुसीमए-वृषीमतः' सतू संय. भयाणा साधुन। छ. तेथी 'बुसिम-वृषीमान्' संयमपणे साधु 'जग-जगत्' अस माने यावर ३५ गतूने 'परिन्नाय-परिक्षाय' : परिशाथी सभ्य५-जीते श्री सूत्रांग सूत्र : 3

Loading...

Page Navigation
1 ... 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596