Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 511
________________ ५०० सूत्रकृताइसने मूलम्-भावणाजोगसुद्धप्पा जले णावा व आहिए। नावा व तीरसंपन्ना सव्वदुक्खा तिउट्टइ ॥५॥ छाया-भावनायोगशुद्धात्मा जले नौरिव आख्यातः। नौरिव तीरसंपन्ना सर्वदुःखात् त्रुटयति ॥५॥ अन्वयार्थः-(भावणाजोगसुद्धप्पा) भावनायोगशुद्धात्मा-सत्संयमसंस्कार रूपशुद्धभावनाभावितात्मा मुनिः (जले) जले जलशब्देन जलमचुरे समुद्रे (नावाव) नौरिख (भाहिए) आख्यातः कथितः भगवशिः। एतेन किमिति दृष्टान्तेन स्पष्टयति-(तीरसंपन्ना) तीरसंपन्ना तीरं प्राप्ता (नावा व) नौरिच स मुनिः (सन्द. 'भावणाजोगसुद्धप्पा' इत्यादि। शब्दार्थ-'भावनाजोगसुद्धप्पा-भावनायोगशुद्धात्मा' सत्संयमरूप शुद्ध भावना रूपी योग से शुद्ध आत्मावाला पुरुष 'जले-जले' जल शब्द से जलाधिक पनेवाले समुद्र में 'णावा व-नौरिव' नाव के समान 'आहिए-आख्यातः' कहा गया है 'तीरसंपन्ना-तीरसंपन्न।' तीर-किनारे को प्राप्त करके 'णावा व-नौरिच' जैसे नौ विश्राम करती है ऐसा वह मुनि 'सम्बदुक्खा-सर्वदुःखात्' शारीरिक और मानसिक क्लेशों से 'तिउट्टइ-त्रुटयति' मुक्त होता है ॥५॥ अन्वयार्थ-भावनायोग से अर्थात् सत्संयम के संस्कार से शुद्ध आत्मा वाला मुनि जल में अर्थात् जल की प्रचुरता वाले समुद्र में नौका के समान कहागया है। इससे क्या फल होता है ? यह दृष्टान्त के शा---'भावणाजोगसुद्धप्पा-भावनायोगशुद्धात्मा' सत् सय५३५ शुद्ध लापना ३५० योगथा शुद्ध आत्मावाणी पु३५ ‘जले-जले' ora vथी ताधिs. भावास समुद्रमा 'नावाव-नौरिव' हाडनी म 'आहिए-आख्यातः' स. 'तीरसंपन्ना-तीरसंपन्नाः' ती२-नाराने प्राप्त प्रशने 'नावाव-नौरिव' नेम विश्राम ४२ छ. मे शते ते मुनि 'सव्वदुक्खा-सर्वदुःखात्' शारी२४ मन मानसि ४ोशाथी 'तिउट्टइ-त्रुट्यति' भुत थाय छे. ॥५॥ અવયાર્થ–ભાવના વેગથી અર્થાત્ સત્સયમના સંસ્કારથી શુદ્ધ આત્મા વાળા મુનિ જળમાં અર્થાત્ જલની પ્રચુરતાવાળા સમુદ્રમાં નૌકા જેવા કહેલ છે. તેનાથી શું ફળ થાય છે? તે નીચેના દષ્ટાન્તથી સ્પષ્ટ કરે છે. કિનારાને श्री सूत्रकृतांग सूत्र : 3

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