Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 526
________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १५ आदानीयस्वरूपनिरूपणम् ५१५ सर्वपरिग्रहहेतवः इति निश्चित्य 'इथिओ' स्त्रीः 'ण सेवंति' न सेवन्ते 'ते' ते इत्थम्भृता आत्मार्थिनः (जणा) जना:-महापुरुषाः 'बंधणुम्मुक्का' बन्धनोन्मुक्ताः स्त्रीजालबन्धरहिततया सकलबंधनरहिताः सन्तः 'जीवियं' जीवितं असंयमजीवितम् उपलक्षणात् वालमरणमपि च 'नावति ' नाऽवकांक्षन्ति किमर्थ जीवितं मरणं च नावकाङ्क्षन्तीत्याह-यतः 'हु' निश्चयेन 'ते' ते-सीसंगवर्नकाः 'जणा' जनाः 'आइमोक्खा' आदिमोक्षाः अत्र आदिशब्दः प्रधानार्थकस्तेन आदि प्रधानम् अन्यपुरुषार्थापेक्षया मोक्षः अशेषकर्मक्षयात्मको येषां ते आदिमोक्षाः, प्रधानभूतमोक्षाख्यपुरुषार्थोद्यताः अतएव ते जीवितं मरणंच नाव काङ्क्षन्तीति भावः ॥९॥ मूलम्-जीवियं पिट्रेओ किंचा अंतं पावंति कम्मुणं । कम्मुणा संमुही भूया जे मंग्ग मणुसासई ॥१०॥ छाया--जीवितं पृष्ठतः कृत्वा अन्तं प्राप्नुवन्ति कर्मणाम् । कर्मणा संमुखी भूता ये मार्गमनुशासति ॥१०॥ क्या, स्त्रियां ही समस्त परिग्रह का कारण हैं, वे स्त्रियों का सेवन नहीं करते हैं । ऐसे आत्मार्थी जन स्त्री के जाल से छुटकारा पाकर समस्त बन्धनों से मुक्त हो जाते हैं । वे न असंयम जीवन की इच्छा करते हैं और न बालमणकी । वे क्यों जीवन भरण की इच्छा नहीं करते ? इसका उत्तर यह है कि स्त्री प्रसंग के त्यागी वे जगत् वासी जन आदिमोक्ष होते हैं। अर्थात् सर्व प्रथम मोक्षगामी होते हैं। इसी कारण जीवन मरण की इच्छा नहीं करते ॥९॥ ઉત્પન્ન કરવાવાળી છે. વધારે શું કહેવાય? સિયે જ સઘળા પરિગ્રહનું કારણ છે, તેઓ સ્ત્રિનું સેવન કરતા નથી. એવા આત્માર્થી જન સ્ત્રીની જાળથી છૂટકાર પામીને સઘળા બંધનોથી મુક્ત થઈ જાય છે. તેઓ અસં. યમી જીવનની ઈચ્છા કરતા નથી, તેમજ બાલમરણની પણ ઈચ્છા કરતા નથી. તેઓ જીવન મરણની ઈચ્છા કેમ કરતા નથી ? એને ઉત્તર એ છે કે-સ્ત્રી પ્રસંગને ત્યાગ કરવા વાળા તેઓ જગતમાં રહેનારાઓ આદિ મેક્ષ હોય છે. અર્થાત્ સર્વ પ્રથમ મોક્ષગામી હોય છે. એજ કારણે જીવન મરણની ઈચ્છા કરતા નથી. છેલ્લા श्री सूत्रकृतांग सूत्र : 3

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