Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 528
________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र.शु. अ. १५ आदानीयस्वरूपानरूपणम् ५१७ (कम्मुणा) कर्मणा तपःसंयमादि सदनुष्ठानरूपया क्रियया (संमुहीभूया) संमु. खीभूताः अशेषकर्मक्षपणमार्गाभिमुखाः सन्तः (मगं) मार्ग-जिनोक्तं सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्ररूपम् (अणुसासई) अनुशाप्तति भव्येभ्यः समुपदिशन्ति सदुपदेशस्य परम्परया मोक्षमाप्तिहेतुत्वादिति ॥१०॥ टीका-जीवितेच्छां परित्यज्य किं कुर्वन्तीत्याह-ते असंयमजीयनेच्छारहिता महापुरुषाः 'जीवियं' जीवितम्-असंयमजीवितम् 'पिट्ठओ किच्चा' पृष्ठतः कृत्वा, अनादृत्य 'कम्मुणं' कर्मणां ज्ञानावरणीयादीनाम् 'अंत' अन्तं-नाश 'पार्वति' प्राप्नुवन्ति । सदनुष्ठानकरणेन जीवननिरपेक्षाः सन्तः अशेषकर्मक्षयस्वरूपं मोक्षं प्राप्नुवन्तीत्यर्थः, 'जे' ये सकलकर्मक्षपणाऽसमर्थास्ते 'कम्मुणा' कर्मणा तपः संयमादिविशिष्टाऽनुष्ठानेन 'संमुहीभूया' संमुखीभृताः सकलकर्मकरते हैं । जो सकल कर्मों का क्षय करने में समर्थ होते हैं, वे पुरुष तप संयम आदि के अनुष्ठान से समस्त कर्मों को क्षपण करने के अभिमुख होकर सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र तप रूप मोक्ष मार्ग का प्राणियों के हित के लिए भव्य जीवों को उपदेश देते हैं, क्योंकि मोक्षमार्ग का उपदेश भी परम्परा से मोक्ष का प्रापक होता है ॥१०॥ टीकार्थ-जीवन की इच्छा को त्याग कर क्या करते है ? सो कहते हैं असंयम जीवन की इच्छा से रहित महापुरुष असंयममय जीवन को त्याग कर ज्ञानावरणीय आदि कर्मों का अन्त कर देते हैं अर्थात् सदनुष्ठान करके जीवन से निरपेक्ष होकर समस्त कर्मक्षय रूप मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। जो समस्त कर्मों का क्षय करने में असमर्थ होते हैं, वे तप संयम आदि का विशिष्ट अनुष्ठान करके मोक्ष के अभिमुख કરે છે. જેઓ સકળ કર્મોને ક્ષય કરવામાં સમર્થ હોય છે. તે પુરૂષ તપ સંયમ વિગેરેના અનુષ્ઠાનથી સઘળા કર્મોના ક્ષપણ કરવામાં અભિમુખ થઈને સમ્યક્ દશન જ્ઞાનચારિત્ર તપ રૂપ મેક્ષ માર્ગને પ્રાણિયોના હિત માટે ભવ્ય અને ઉપદેશ આપે છે. કેમ કે-મોક્ષ માર્ગને ઉપદેશ પણ પરંપરાથી મોક્ષ પ્રાપ્ત કરાવનાર હોય છે. ૧૦ टी---वननी छानी त्यास शन शु' ४२४१ मतावले. –અસંયમી જીવનની ઈચ્છાથી રહિત પુરૂષ અસંયમ મય જીવનને ત્યાગ કરીને જ્ઞાનાવરણીય વિગેરે કર્મોને અંત કરી દે છે. અર્થાત સદનુષ્ઠાન કરીને જીવનથી નિરપેક્ષ થઈને સમસ્ત કર્મ ક્ષય રૂપ મોક્ષ પ્રાપ્ત કરી લે છે, જે સમસ્ત કર્મોને ક્ષય કરવામાં અસમર્થ હોય છે, તેઓ તપ, સંયમ, વિશે श्री सूत्रकृतांग सूत्र : 3

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