Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
________________
५०६
सूत्रकृताङ्गसूत्रे आत्मनः सकाशात् पृथग्न भवंति स मुनिर्भूतभविष्यद्वर्तमानकालिककर्मविनिर्मुक्तो भूत्वा मोक्षं प्राप्नोतीति भावः ॥६॥ मूलम्-अकुम्बओ णवं नत्थि कम्मं णाम विजाणइ ।
विन्नाय से महावीरे 'जे ने जाई ण मिर्जेइ ॥७॥ छाया- अकुर्वतो नवं नास्ति कर्म नाम विजानाति ।
विज्ञाय स महावीरो यो न याति न म्रियते ॥७॥ भविष्यत् और वर्तमान काल संबंधी कर्मों से रहित होकर मोक्ष प्राप्त करता है ॥६॥
'अकुचओ' इत्यादि।
शब्दार्थ-'अकुव्वो -अकुर्वत:' पापकर्म को नहीं करनेवाले मुनिको 'णवं-नवम्' ज्ञानावरणीय आदि नूतनकर्म का बंध ‘णस्थिनास्ति' नहीं होता है कारणकी 'से-स' वे 'महावीरे-महावीरः' महा. वीर पुरुष 'कम्म-कर्म'-आठ प्रकार के कर्म को तथा 'नाम-नाम' कर्म निर्जराको भी 'विजाणइ-विजानाति' जानते हैं और 'विनाय-विज्ञाय' जानकरके 'जेण-येन' जो कारण से वह मुनि 'न जायई-न जायते' संसारमें उत्पन्न नहीं होता है एवं 'न मिज्जइ-न म्रियते' मरता भी नहीं है अर्थात् जन्म, जरा और मृत्यु रहित होकर मुक्त हो जाता है।७। ભવિષ્ય અને વર્તમાનકાળ સંબંધી કર્મોથી રહિત થઈને મોક્ષ પ્રાપ્ત ४२ छ. ॥
'अकुब्वओ' त्या
सम्हा-'अकुवओ-अकुर्वतः' ५१५४भ न ४२११॥ भुनिन 'णवंनवम्' ज्ञानावरणीय विगैरे नवीन भनी ५' 'णत्थि-नास्ति' थत नथा ४१२६५ है 'से-सः' ते 'महावीरे-महावीरः' महावी२ ५३५ 'कम्म-कर्म' 2418 ४२न। भ२ तथा 'नाम-नाम' भनिने ५५ 'विजाणइ-विजानाति' and छे तथा 'विन्नाय-विज्ञाय' जमीन 'जेण-येन' २थी त भुनि 'न जायई-न जायते' संसारमi s4न्न थता नथी, तथा 'न मिज्जइ-न म्रियते' भरते। પણ નથી. અર્થાત્ જન્મ, જરા, અને મૃત્યુ રહિત થઈને મુક્ત બની જાય છે. શા
श्रीसूत्रतांगसूत्र : 3