Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १५ आदानीयस्वरूपनिरूपणम् ४५७ क्षेत्रादिभावरूपेण द्रव्यपर्यायरूपेण च जानाति न किमपि तस्यापरिज्ञातं भवतीति भावः । अत्र 'तायी' इत्यनेन सामान्यस्य 'मनुते' इत्यनेन विशेषस्य परिज्ञातृत्वेन सः सर्वज्ञः सर्वदर्शीति प्रदर्शितम् । 'न कारणाभावात् कार्य समुपचने। इति न्यायात् 'दर्शनावरणान्तकः' इत्यनेन घातिकर्मचतुष्टयस्य क्षपकत्वं प्रदर्शितम् धातिकर्मचतुष्टयक्षये सत्येव केवलज्ञान केवलदर्शनोत्पत्तिसंभवादिति ॥१॥ मूलम्-अंतए वितिगिच्छाए, से जाणइ अणेलिस।
अणेलिसस्स अक्खाया णं से होई तेहिं तहिं॥२॥ छाया-अन्तको विचिकित्सायाः स जानात्यनीदृशम् ।
अनीदृशस्याख्याता न स भवति तत्र तत्र ॥२॥ अतीत कालिक, वर्तमानकालिक और भव्यिकालिक इस प्रकार तीनों कालों के जीव अजीव आदि समस्त पदार्थों को जानता है।
'तय' धातु जानने के अर्थ में है। यहां 'तायी' इस पद से सामा. न्य धर्मों का जानना प्रकट किया गया है, और 'मन्नई' इस पद से विशेष धर्मों का जानना सूचित किया है। अतः वह सर्वज्ञ सर्वदर्शी होता है, यह प्रदर्शित किया गया है। ___ कारण के अभाव में कार्य की उत्पत्ति नहीं होती इस न्याय से 'दर्शनावरणान्तक' इस पद से चारों घातिक कर्मों का क्षय करने वाला अर्थ लियागया है, क्यों कि चारों घातियो कर्मों का क्षय होने पर ही केवलज्ञान और केवलदर्शन की उत्पत्ति होना संभव है ॥१॥ અને ભવિષ્ય કાળ સંબંધી આરીતે ત્રણે કાળના જીવ, અજીવ, વિગેરે સઘળા પદાર્થોને જાણે છે
'तय' धातु पाना म मा छे. महियां 'तायी' AL ५४थी साधन ना२३ मे म प्रगट ४२थामा मावेस छ. मने मन्नई'
આ પદથી વિશેષ ધર્મોના જાણનારા એક સૂચિત થાય છે. તેથી તે સર્વજ્ઞ, સર્વદશી હોય છે. એમ બતાવવામાં આવેલ છે.
२९ना मामा ४ायनी पत्ति यती नथी. 21 न्यायथी 'दर्शना. वरणान्तक' मा ५४ थी ॥२ धातिया भेनि। क्षय ४२१११ मे प्रमाणे ને અર્થ સ્વીકારવામાં આવેલ છે. કેમકે-ચારે ઘાતિયા કર્મને ક્ષય થાય ત્યારે જ કેવળજ્ઞાન અને કેવળદર્શનની ઉત્પત્તિ થવા સંભવ છે મા
श्री सूत्रतांग सूत्र : 3