Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १२ समवसरणस्वरूपनिरूपणम्
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अन्वयार्थः- (संवच्छरं) साम्वत्सरम्-सुभिक्षदुर्भिक्षादिपतिपादक ज्योति:शास्त्रम् १, (मुविणं) स्वप्न-शुभाशुपस्वप्नपतिपादकं शास्त्रम् २, (लक्खणं च) लक्षणं च-आन्तरवाह्यलक्षणफलपतिपादकं शास्त्रद्वयम् ४ । (निमित्त) निमित्तंनिमित्तशास्त्रम्-शुभाशुभशकुनादिद्योतकम् ५, (देव) देहंच-शरीरम्, तत्र संजातं मपतिलकादिकमङ्गस्फुरणादिकं च, भौमान्तरिक्षरूपोत्पातद्वयप्रतिपादकं शास्त्रद्वयं (४) 'देह'च-देहंच' देह में रहे हुवे मष तिल आदि से फल को बताने वाला शास्त्र (५) 'उप्पाइयंच-औत्पातिकं च' भूकम्पादिरूप उत्पात से फल बतानेवाला शास्त्र (६) 'एयं-एतत्' ये 'अटुंगं-अष्टाङ्गम्' आठ प्रकार के शास्त्र को 'अहित्ता-अधीत्य' पढकर 'लोगंसि-लोके' जगत् में 'बहवे-बहवः' अनेक मनुष्य 'अणागताई-अनागतानि' भविष्यकाल संबंधी बातों को 'जाणंति-जानन्ति' जानते हैं यह सुविदित है ॥९॥ ____ अन्वयार्थ-(१) संवत्सर-सुभिक्ष-दुर्भिक्ष आदि कहने वाला शास्त्र (२) स्वप्न- शुभ या अशुभ स्वप्नों का फल प्रतिपादन करने वाला शास्त्र (३-४) लक्षण-आन्तरिक और बाहय लक्षणों को दर्शाने वाले शास्त्र (५) निमित्त-निमित्त शास्त्र-शकुन आदि का निरूपण करनेवाला शास्त्र (६) देह-देह में होने वाले मष, तिल आदि का तथा अंग फड़कने का फल प्रदर्शित करने वाला शास्त्र (७-८) औरपातिकभूमि संबंधी और आकाश संबंधी उत्पातों का फल दिखलाने वाले शुन विरेन। ५१ मतावा निमित्त शास (५) 'देह च-देहंच' शरी. રમાં રહેલા અષ-મસા, તલ વિગેરે પરથી ફળ બતાવવા વાળું શાસ્ત્ર (૬) 'उप्पाइयं च-औत्पातिकं च भूपविगेरे अत्यातथा मतावावाणुशासन (८) 'एयं-एतत्' मा 'अष्टुंगं-अध्यागम्' मा प्रधान शासने 'अहित्ता-अधीत्य' मशीन 'लोगसि-लोके' गतमा 'बहवे-बहवः' या मनुष्या 'अणागताईअनागतानि' मा६ि०५ ४७ मधी पातो 'जाणंति-नानन्ति' | छ. એ સુવિદિત છે. લાલા
मन्या -(१) सत्स२-९४५४५ ॥ वियरे मताना३ याति:शाख (२) ३१न-शुभ अथवा अशुभ स्वप्नातुंण मनाशा (३-४) લક્ષણ-આંતરિક અને બાહ્ય લક્ષણેને બતાવનારૂં શાસ્ત્ર (૫) નિમિત્ત શાસ (6) रेड-शरीरमा थवा भष-तस, विशेने, तथा म १२४ानु मता. વનારૂં શાસ્ત્ર (૭-૮)” ઔત્પાતિક ભૂમિ સંબંધી અને આકાશ સંબંધી ઉત્પાતેના ફલ બતાવનાર અને શાસ્ત્ર આ અષ્ટાંગ અર્થાત આઠ અંગવાળા
श्री सूत्रकृतांग सूत्र : 3