Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
________________
४७६
सूत्रकृताङ्गसत्र ___ अन्वयार्थः- (अलूमए) अलूप येत्-अपसिद्धान्तकथनेन सर्वज्ञभाषिताङ्गं न लूपयेत्-न दूषयेत् णो पच्छन्नभासी' न प्रच्छन्न भाषी सिद्धान्तार्थस्य प्रच्छन्न भाषको न भवेत्, तथा 'ताई त्रायी प्राणिनां त्राणकर्ता षटकायपरिपालका (सुत्तमत्थं च) सूत्रमर्थ च-आगमार्थ स्वमतिकल्पनया विपरीतम् ‘ण करेज्ज' न कुर्यात् स्वाधिया सूत्रार्थ नान्यथारूपेण प्ररूपयेत् यतः (सत्तारभत्ती) शास्त. करने वाला न बने ‘णे। पच्छन्नभासी-न प्रच्छन्नभाषी' सिद्धान्त के अर्थ को छिपाकर कथन न करे तश 'ताई-वायी' प्राणियों के रक्षण करनेवाला पुरुष 'सुत्तमत्थं च-सूत्रम्' अर्थश्च' आगमके अर्थ को अपनी बुद्धि की कल्पनासे विपरीत 'ण करेज्जा-न कुर्यात्' न करे अर्थात् स्वार्थ बुद्धिसे सूत्रार्थी को अन्यथा रूपसे न कहे 'सत्तारभत्ती-शास्त भत्या' पर के हित करने वाले आचार्य के प्रति भक्ति से 'वायं-चादम्' वाणीको 'अणुवीय-अनुविचिन्त्य' सम्यक विचार करके आगम का विरोध न हो इस प्रकार की वाणी का कथन करे तथा सुयंच-श्रुतश्च'
आचार्य एवं गुरु मुखसे जो सुना हो उसको ही 'सम्म-सम्यक् सुचारु रूपसे 'पडिचाययंति-प्रतिपादयेत्' सूत्रार्थ का प्रतिपादन करे ॥२६॥
अन्वयार्थ-अलूषक अर्थात् अपसिद्धान्त का कथन कर सर्वज्ञ भाषित आचाराङ्ग आदि आगम को दूषित नहीं करने वाला साधु सिद्धान्त भूत अर्थ को एकान्त में छिपकर भाषण के द्वारा गुप्त न करे तथा पृथिव्यादि षटूकाय का परिपालन करने वाला समस्त प्राणियोंका मने 'णो पच्छन्नभासी-न प्रच्छन्नभाषी' सिainना अयन यूावान ४थन
२ तथा 'ताई-त्रायी' प्राणीनु २क्षण ४२वावाणे ५३५ ‘सुत्तमत्थंच-सूत्रम् अर्थश्च' सामना अथन पातानी मुद्धिनी ४६५नाथी विपरीत शत 'ण करेज न कुर्यात्' न ४२ अर्थात २ाय भुद्धिया सूत्राय ने अन्यथा रे न हे 'सत्तारभत्ती-शास्तृभक्त्या' मन्यनु हित ४२वाया। माया प्रत्ये सतिथी 'वाय-वादम्' पपीने 'अणुवीय-अनुविचिन्त्य' विया२ रीने भागमन। विशेष न थाय मे शतनी पान ४यन ४२ तथा 'सुयंच-श्रुतञ्च' माया भने २३. भुमी के समन्यु य तेने १ 'सम्म-सम्यक्' सारी रीत 'पडिवाययंतिप्रतिपादयेत्' सूत्रानु प्रतिपादन ४२ ॥२६॥
અન્વયાર્થ-અલૂષક અર્થાત્ અપસિદ્ધાંતનું કથન કરીને સર્વજ્ઞ કથિત આચારાંગ વિગેરે આગને દૂષિત ન કરવાવાળા સાધુ સિદ્ધાંત યુકત અને એકાંતમાં છુપાઈને ભાષણ દ્વારા ગુપ્ત ન કરે. તથા પૃથિવી વિગેરે જાય
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૩